जामुन से लाभ

गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी। 


जामुन के कच्चे फलों का सिरका बनाकर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं। अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो तो इस सिरके को ताजे पानी के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और रात्रि, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है। 


जामुन के रस का प्रयोग कुछ विशेष औषधियों के निर्माण के लिए भी किया जा रहा है,जिनके माध्यम से सिर के सफेद बाल आना बंद हो जाएँगे। 

जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है। इसकी गुठली के अंदर की गिरी में 'जंबोलीन' नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है। 
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आप अगर बहुत थकान महसूस कर रहे हैं तो पानी के छीटों से आप फ्रेश महसूस करेंगे। सादा पानी भी आपकी त्वचा को तरोताजा रखता है। वह एक प्राकृतिक ॉइस्चराइज़र की तरह काम करता है। खीरे के जूस को आप चेहरे पर लगाएँ तो इससे चहरे पर ठंडक महसूस होगी तथा सनबर्न (धूप की जलन) की समस्या से बचे रहेंगे।

ऑफिस से जब आप लौट कर आते हैं तब आप अपने पैर, हाथ, हल्के गुनगुने पानी में डाल कर रखें जिससे कि आपकी सारी थकान कम हो जाएगी। अगर आप चाहें तो इस पानी में थोड़ा सा नमक भी डाल सकते हैं। इससे पैर कोमल हो जाते हैं तथा आप सॉफ्टनर से पैरो के तले को साफ कर सकते हैं। दस से पन्द्रह मिनट तक अपने पैर को पानी में डालकर रखें इससे शरीर का रक्तसंचार भी बढ़ेगा।

एक बोतल में आप थोड़ा सा कोलोन् या परफ्यूम की थोड़ी सी बूँदों को लेकर आप अधिक मात्रा पानी के साथ उसे मिला दे। स्प्रे बोतल की तरह इसे इस्तेमाल कर आप रिफ्रेश हो सकते हैं।
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अब तक अजीर्ण होने की स्थिति से बचने या पाचन क्रिया को अच्छा बनाए रखने के लिए दादी-नानी अजवाइन की फंकी मार लेने की नसीहत देती आई हैं। घरों में तो अजवाइन का खट्टा-मीठा पाचक मिश्रण भी खाने के बाद सेवन हेतु बनाकर रखा जाता है..लेकिन अब इस महकदार मसाले का एक और फायदा सामने आया है। जी हाँ.. अजवाइन को पथरी से निजात दिलाने में भी कारगर माना जा रहा है।

भारतीय भोजन विधि में अन्य मसालों के साथ अजवाइन का भी प्रयोग आम है। पकौड़े से लेकर बेकरी के बिस्किट तक में इसका प्रयोग किया जाता है। अजवाइन की पत्तियों का प्रयोग भी स्वादिष्ट पकवानों को बनाने में किया जाता है।

इन सारे प्रयोगों के अलावा प्राचीन चिकित्सा पद्धति के अनुसार अजवाइन का उपयोग गुर्दे की पथरी को दूर करने में भी किया जा सकता है। आयुर्वेद तथा यूनानी पद्धति से चिकित्सा करने वाले इस बात पर विश्वास करते हैं कि अजवाइन को शहद के साथ लेने से गुर्दों में स्थित पथरी के छोटे टुकड़े हो जाते हैं और इस नियमित प्रयोग से वे टुकड़े शरीर के बाहर हो जाते हैं। इस तरह गुर्दों की पथरी पर अजवाइन कारगर सिद्ध हो सकती है।
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आज विश्व अस्थमा दिवस है। यूँ तो कई दिवस आते हैं और हम उनके बारे में चर्चा करके भूल भी जाते हैं, पर आज का दिन याद रखना जरूरी है, क्योंकि सवाल साँसों का है। अगर इस दिन की गंभीरता को न समझा तो साँसें कभी भी थम सकती हैं। न चाहते हुए भी दुनियाभर में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो अपने हिस्से की साँस भी पूरी तरह नहीं ले पाते।

आखिर इसकी क्या वजह है, कैसे अस्थमा के रोगियों को कम किया जा सकता है... जैसे विषयों पर चिकित्सकों द्वारा दी गई जानकारी हम आप तक पहुँचा रहे हैं। शहर में धुएँ और धूल के कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। यही नहीं, पेट्रोल पंप पर काम करने वाला हर दसवाँ कर्मचारी अस्थमा की चपेट में है। इसकी सबसे प्रमुख वजह है प्रदूषण के बीच कार्य करना। इस रोग को रोका जा सकता है, जरूरत है सावधानी की।

.धूम्रपान न करें, स्वच्छ वातावरण में रहें
.हरियाली के बीच टहलें, व्यायाम, स्वीमिंग करें
.बीमारी होने पर ठंडे व खट्टे भोजन से परहेज करें
.धूल, धुआँ, प्रदूषण से बच्चों को बचाएँ
.नियमित रूप से जाँच कराएँ
.आशंका होने पर संबंधित चिकित्सक से ही जाँच कराएँ
.धुआँ, धूल से बचने के लिए मॉस्क का प्रयोग करें
कुछ तथ्
. भारत में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगभग 15 से 20 करोड़
. लगभग 12 प्रतिशत भारतीय शिशु अस्थमा से पीड़ित
. विश्वभर में अस्थमा के कारण वक्त से पहले ही लगभग 1 लाख 80 हजार मौतें हो जाती हैं
. इंदौर में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगभग 5 से 10 प्रतिशत है
विश्व अस्थमा दिवस

प्रदूषण ही है मुख्य कारण
डॉ. प्रमोद झँवर के अनुसार अस्थमा के कारणों की चर्चा की जाए तो बढ़ती धूल व धुआँ और घटती हरियाली प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति, धूल के उठते गुबार, औद्योगिक इकाइयों व वाहनों से होने वाला वायु प्रदूषण भी अस्थमा के रोगियों की संख्या बढ़ा रहा है। इन कारणों से हवा में घुलती कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड श्वसन संबंधी परेशानियों को बढ़ावा देती हैं। खान-पान की बात करें तो जंकफूड, टीनफूड, खाद्य पदार्थों में रंगों का होना व तबीयत बिगड़ने पर उपचार नहीं कराना रोग बढ़ाने की वजहों में शामिल हैं।

सक्षम है चिकित्सा विज्ञान
डॉ. हँसमुख गाँधी का मानना है कि आज इस बीमारी को होने से पहले ही रोका जा सकता है और यदि श्वास संबंधी रोग हो भी जाए तो उसे दूर किया जा सकता है। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान इस रोग से लड़ने में पूर्णतः सक्षम है। अब ऐसी दवाइयाँ और उपचार पद्धति भी आ चुकी हैं जिसके दुष्प्रभाव शरीर पर बिलकुल नहीं पड़ते। इसके लिए आवश्यक है लोगों का जागरूक होकर उपचार कराना। बात अगर बीमारी की रोकथाम की करें तो सरकार को चाहिए कि हरियाली बढ़ाई जाए और सभी जगह एक साथ सड़कों की खुदाई करने के बजाए क्रमवार कार्य किया जाए ताकि धूल की समस्या रोग का कारण न बन पाए।

बचपन से ही हो जाती है शुरुआत
डॉ. अशोक बाजपेयी के अनुसार अस्थमा की शुरुआत बचपन से ही जाती है। अमूमन 4 से 11 साल की उम्र से ही यह समस्या शुरू हो जाती है। इसकी वजह एलर्जी, प्रदूषण और वंशानुगत हो सकती है। बच्चों को इससे बचाने के लिए घर के भीतर किसी तरह का प्रदूषण न होने दें, उनके कमरों को साफ रखें, बच्चों को शुद्ध हवा में ले जाएँ, हानिकारक खिलौने, बॉक्सनुमा पलंग, जंकफूड आदि से बच्चों को दूर रखें।
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गाँव के लोगों द्वारा गुदवाए जाने वाले गोदने अब टैटू बन चुके हैं। इसका क्रेज दुनिया भर में छाया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ज्यादा टैटू गुदवाने से आपकी स्किन असंवेदी हो जाती है। ठेठ भाषा में कहें, तो आपकी चमड़ी बेशरम हो जाती है।

टैटू एक फैशन
पहले गोदना गुदवाना फैशन में नहीं था, मगर अब नए अवतार टैटू के रूप में यह एक फैशन बन गया है। कुछ लोग तो पूरे शरीर पर टैटू गुदवाते हैं। पर हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि टैटू गुदवाने से त्वचा की संवेदना में कमी आती है। उत्तरी कोलेरैडो विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र टॉड एलन ने इस अध्ययन के दौरान 54 लोगों की त्वचा की संवेदनशीलता का मापन किया, जिनमें से 30 ने टैटू गुदवाए हुए थे। त्वचा की संवेदनशीलता के मापन हेतु एक सरल-से उपकरण एस्थेसियोमीटर का इस्तेमाल किया जाताहै। यह डिवाइडर जैसा एक उपकरण है, जिसमें प्लास्टिक की दो नोक होती हैं।

संवेदनशीलता की जाँच के लिए इन दोनों नोकों को व्यक्ति की त्वचा पर स्पर्श किया जाता है और उसे यह बताना होता है कि दो नोक छुआई गई हैं या एक। धीरे-धीरे इन नोकों के बीच दूरी बढ़ाई जाती है और तब तक बढ़ाई जाती है जब तक कि दोनों का एहसास अलग-अलग न होने लगे। जितनी कम दूरी पर दोनों नोकें अलग-अलग महसूस हों, संवेदनशीलता उतनी अधिक है।

एलन ने शरीर के पाँच हिस्सों पर त्वचा की संवेदनशीलता नापी- कमर, पिंडली के अंदर वाले भाग, भुजा के अंदर वाले भाग, तर्जनी उँगली का सिरा और गाल। देखा गया कि जिन व्यक्तियों ने टैटू करवाया था उनकी बगैर टैटू वाली त्वचा की संवेदनशीलता और पूरी तरह बगैर टैटू वाले लोगों के उसी हिस्से की त्वचा की संवेदनशीलता में कोई अंतर नहीं था। मगर टैटूयुक्त हिस्से की संवेदनशीलता काफी कम थी। टैटू के कारण त्वचा की संवेदनशीलता पर असर पड़ने के कई कारण हो सकते हैं। एक तो यह हो सकता है कि गोदने की बारंबार की जाने वाली क्रिया उस हिस्से की तंत्रिकाओं को सुन्न कर देती हो। या यह भी हो सकता है कि गोदने के साथ जो स्याही इंजेक्ट की जाती है, वह स्पर्श के एहसास को कुंद करती हो या यह भी संभव है कि स्याही की सुई स्पर्श ग्राहियों को नुकसान पहुँचाती हो। इसलिए सुझाव यही है कि टैटू से बचा जाए।
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चाय एक लोकप्रिय पेय है। न केवल हम स्वयं ही इसका सेवन करते हैं, अपितु अतिथियों का स्वागत-सत्कार भी चाय से ही किया जाता है। सच तो यह है कि चाय लोगों की जिंदगी में रच-बस गई है। हाल में वैज्ञानिकों ने इस बात पता लगाया है कि चाय का सेवन हृदय को स्वस्थ बनाए रखता है।

मानवीय विषयों पर किए गए विशेष क्लिनिकल अनुसंधान से यह तथ्य उजागर हुआ है कि हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम के लिए हमारी रोजमर्रा की डाइट में चाय सेवन की प्रमुख भूमिका है।  अमेरिका कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के एक शोध के अनुसार काली चाय हृदय के लिए काफी अच्छी है। इसमें मौजूद फ्लेवेनाइड्स एंटीऑक्सीडेंट हृदय के सेल्स तथा ऊतकों की ऑक्सीकरण से होने वाली क्षति से सुरक्षा करते हैं।  एक अन्य शोध से पता चलता है कि चाय का सेवन थक्के बनने की प्रक्रिया को नियंत्रित रखता है जिससे हृदयाघात की आशंका कम हो जाती है। रक्त में एंटीऑक्सीडेंट का घनत्व बढ़ने से चाय हृदय के लिए लाभदायक है।

जो महिलाएँ प्रतिदिन कुछ कप चाय पीती थीं, उनमें हृदय रोग के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी तत्व ऑर्थेरोसिलरोसिस की मात्रा नगण्य पाई गई। चाय में मौजूद फ्लेवोनाइड्स हृदय संबंधी कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम को मजबूत रखने में सहायक पाया गया। इसी अध्ययन में यह आकलन किया गया कि जो महिलाएँ प्रतिदिन एक-दो कप काली चाय पीती रहीं, उनमें गंभीर ऑर्थेरोसिलरोसिस का खतरा 50 प्रतिशत से कम पाया गया और 5 कप से ज्यादा चाय का सेवन करने वाली महिलाओं में इसकी संभावनाएँ न्यूनतम रहीं। पुरुषों में भी इसी प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त किए गए हैं।

कुल 3454 पुरुष एवं महिलाओं पर यह अध्ययन किया गया, जो 55 वर्ष या इससे अधिक आयु के हैं तथा जिन्हें हृदय संबंधी कोई गंभीर रोग नहीं है। इन सभी को हरी चाय के बजाय काली चाय का सेवन कराया गया। ब्रिटेन के आहार विशेषज्ञों ने एक अध्ययन में पाया कि एक दिन में चार कप चाय पीने से दिल के दौरे की आंशका कम हो जाती है। इसी प्रकार दाँतों के लिए भी चाय को लाभदायक माना गया है क्योंकि इसमें फ्लोराइड की मात्रा भी होती है। एक अध्ययन से पता चलता है कि काली चाय दाँतों में गंदगी की परत व छेद बनने से रोकती है। यही नहीं, इससे बैक्टीरिया का भी नाश होता है।

इसके पूर्व जापान में किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि हरी चाय में कैविटीरोधी क्षमता होती है। काली चाय में मौजूद पॉलीफेनोल्स दाँतों में कैविटी पैदा करने वाले जीवाणुओं का खात्मा करता है। काली चाय दाँतों की सतह से परत को चिपकाने वाले चिपचिपे पदार्थ के निर्माण को भी रोकती है।

एक कप कड़क चाय पीकर बहुतों को जवानी का एहसास होता है, लेकिन उनमें से कुछ चाय पीने की आदत से परेशान भी रहते हैं। वैज्ञानिक-चिकित्सकों की मानें तो ऐसे लोगों को कतई परेशान नहीं होना चाहिए, क्योंकि चाय हमारे डीएनए में होने वाली गड़बड़ियों को रोकती है और यह तो सबको मालूम ही है कि डीएनए ही वह चीज है जो हमें एक खास रूप और पहचान देता है।

हम जो कुछ भी खाते हैं, उसका हमारे डीएनए पर क्या असर होता है, इस संबंध में किए गए शोध के दौरान पता चला है कि चाय हमारे डीएनए में खराबी नहीं आने देती है। अगर डीएनए में खराबी आ आए तो हमारे जीन में भी गड़बड़ी आ सकती है, जिसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं। जीन में गड़बड़ी के कारण कैंसर होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में जिन कोशिकाओं को मर जाना चाहिए वे जिंदा रहती हैं और स्वस्थ कोशिकाओं पर फैलती जाती है। खराब कोशिकाओं के अनियंत्रित फैलाव को ही कैंसर कहा जाता है।

ब्रिटेन की हेरियट-वाट यूनिवर्सिटी और नॉरबिच स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फूड रिसर्च में किए गए इस शोध के अनुसार हरी व काली चाय में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो मुक्त ऑक्सीजन अणुओं के प्रभाव को बेअसर करते हैं और शरीर में कैंसर होने की आशंकाओं को खत्मकरते हैं। साथ ही चाय के पीने से शरीर में पानी की पूर्ति होती है यानी वह निर्जलीकरण से बचाती है। जहाँ सुरक्षित पानी उपलब्ध न हो, वहाँ चाय पीकर पानी की पूर्ति की जा सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि चाय त्वचा के कैंसर से भी बचाती है। इसमें मौजूद प्लेमोनायड तत्व सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावाइलेट किरणों से त्वचा को नुकसान पहुँचाने से बचाते हैं। प्रतिदिन 4 कप या इससे ज्यादा चाय पीना, पानी पीने के बनिस्बत ज्यादा फायदेमंद है। इस बात का खुलासा वैज्ञानिकों ने किया है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि चाय डिहाइड्रेशन (शरीर में पानी की कमी) को बढ़ाती है, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार असल में चाय शरीर में पानी की मात्रा तो बढ़ाती ही है तथा साथ में हृदयाघात व कैंसर के खतरे को भी कम करती है। शोध से पता चला है कि शरीर के अंदर के अपशिष्ट पदार्थों से लड़ने वाला प्रमुख एंटीऑक्सीडेंट तत्व फ्लेवेनाइड्स चाय में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह अजीर्णता को कम करता है, हड्डियों को मजबूत करता है और दाँतों की क्षति होने से रोकता है। चाय में पाए जाने वाला कैफीन दिमाग को चुस्त रखने में मदद करता है।

शोधकर्ता डॉ. कैरी रक्स्टन का कहना है कि 'अगर चाय को नुकसानदेह चीज समझते हैं तो आप पुराने ख्याल के हैं। चाय स्वास्थ्य का अहम हिस्सा है और यह कई बीमारियों से आपका बचाव कर सकती है। हाँ, लेकिन इतना याद रखिएगा- 'अति हर चीज की बुरी होती है।'
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पिछले करीब 5 सालों से हर दिन नहाने के बाद 15 मिनट ताली बजाता हूँ। मेरा अनुभव रहा है कि बेहद खराब जीवन शैली व रोगों के घर मोटापे के बावजूद केवल इस आदत ने अब तक मेरी रक्षा की है। ताली बजाने के फायदे पर मेरा भरोसा इस कदर बढ़ा है कि कोई पेट या सिर में होने वाली किसी भी परेशानी के लिए अच्छे डॉक्टर की सलाह माँगता है तो मैं पहले ताली की महिमा का बखान करने लग जाता हूँ। जिन लोगों ने मेरी यह सलाह मानी वे सभी मेरे शुक्रगुजार हैं। पिछले महीने की एक घटना के बाद लगा कि मुझे अपना यह अनुभव विशाल पाठक वर्ग से भी बाँटना चाहिए। खबरों की टोह लेने कुछ लंबे छरहरे स्वास्थ्य रिपोर्टरों के साथ शास्त्री भवन में था। वहाँ खुली सस्ती जेनेरिक दवा की सरकारी दुकान में घुस गया। वहाँ कक्ष में बैठे एमबीबीएस डॉक्टर से हम सब ने अपना ब्लड-प्रेशर नपवाया। मेरे ब्लड-प्रेशर की 120/80 रीडिंग देख कर उन्हें सहज यकीन ही नहीं आया।
50 से अधिक उम्र और इतनी बड़ी तोंद के बावजूद इतना 'आदर्श' ब्लड-प्रेशर, कैसे संभव है। दूसरे साथियों का ब्लड-प्रेशर भी सामान्य था लेकिन इतना सामान्य नहीं था। जब मैंने डॉक्टर को ताली बजाने की बात बताई तो उन्हें बात तुरंत समझ में आ गई। वे भी ताली के फायदे से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने कहा कि नियमित ताली बजाने वाले को कम से कम ब्लड-प्रेशर की बीमारी तो नहीं हो सकती ।

लेकिन अगर अपने अनुभव की बात करूँ तो ताली बजाने के अनगिनत फायदे हैं। नियमित रूप से ताली बजा कर कीर्तन-भजन करने वालों पर 'भगवान' की कितनी कृपा होती है यह तो किसी को पता नहीं लेकिन मेरा विश्वास है कि निश्चित रूप से कई रोग उनके पास नहीं फटक पाते होंगे।

दक्षेस देशों के स्वास्थ्य पत्रकारों के संगठन 'हेल्थ एसेईस्ट एंड ऑथर्स लीग' (हील) के संस्थापक सेक्रेटरी जनरल की हैसियत से पत्रकारों के वर्कशॉप में मैं यही कहते हुए शुरू करता था कि इतनी बड़ी तोंद होते हुए मुझे स्वास्थ्य पर भाषण देने का हक नहीं है।

तोंद होना कई बीमारियों का घर माना जाता है लेकिन मैं अपने लंबे अनुभव के आधार पर अब स्वास्थ्य संपादक की हैसियत से यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि ताली बजाने के कई फायदे हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में लंबे अनुभव को इलाज की किसी विधि के प्रभावी होने के प्रमाण के रूप पेश किया जा सकता है ।

ताली बजाना इलाज की प्रभावी विधि एक्यूप्रेशर का एक सहजतम रूप है। कभी मुझे अक्सर डिप्रेशन (अवसाद) घेरे रहता था। सिर हमेशा भारी भारी, अक्सर दर्द, पेट में गैस, कभी भी कुछ हो जाने का डर सवार रहता था। केवल ताली बजाने मात्र से मेरी सारी समस्याएँ दूर हो गई हैं। आत्मविश्वास भी काफी बढ़ा है। लगता है, ताली बजाता रहूँ तो कभी कोई रोग होगा ही नहीं ।

ताली का इतना मुरीद इसलिए भी हूँ क्योंकि मेरी जीवन शैली अच्छे स्वास्थ्य के अनुरूप कतई नहीं है। रात को काफी देर से खाना खाता हूँ। टीवी देखने की इतनी बुरी आदत है कि नींद भाग जाती है। मुश्किल से 2-3 घंटे सो पाता हूँ। सुबह टहलने का तो सवाल ही नहीं। सोचिए, जीवन-शैली ठीक होती तो ताली से और कितने फायदे होते। ताली मुझे इस खराब जीवन-शैली के दुष्प्रभाव से बचा रही है। ठीक से सो नहीं पाने की वजह से सुबह मन भारी जरूर लगता है लेकिन ताली बजाते ही इतना तरोताजा महसूस करने लगता हूँ कि मत पूछिए। सोचता हूँ कोई जादू तो नहीं हो गया।

कहने का यह मतलब कतई नहीं है कि कोई गंभीर रोग है तो सबकुछ छोड़कर ताली पीटना शुरू कर दें। किडनी खराब हो गई है तो ताली पीटने से वह ठीक नहीं होने वाली। यह रोगों से बचाव में बहुत अधिक प्रभावी है लेकिन रोग हो गया है तो ताली उसकी दवा नहीं हो सकती। हाँ, इतना तय है कि इलाज के साथ-साथ ताली बजाएँ तो जल्दी फायदा जरूर होगा । मैं काँटेदार बेलन पर तलवे को 10 मिनट घिसता भी हूँ। यह भी एक्यूप्रेशर की ही विधि है ।

मेरा एक दूसरा अनुभव भी बाँटने योग्य है। सिर के बाल के तेजी से झड़ने को रोकने की कवायद में खासा परेशान था। सिर के बीच में चाँद निकल आया था। कई उपाय किए। बाल झड़ना बंद नहीं हुआ। लगा इस गति से तो जल्द ही सफाचट हो जाएगा। तभी किसी ने सरसों तेल आजमाने की सलाह दी।
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अंगूर सारे भारत में आसानी से उपलब्ध फल है। इसमें विटामिन-सी तथा ग्लूकोज पयाप्त मात्रा में पाया जाता है। यह शरीर में खून की वृद्धि करता है और कमजोरी दूर करता है। यही कारण है कि डॉक्टर लोग मरीजों को फलों में अंगूर ही खाने की सलाह देते हैं।
अंगूर को संस्कृत में द्राक्षा, बंगला में बेदाना या मनेका, गुजराती में धराख, फारसी में अंगूर, अरबी में एनवजबीब, इंग्लिश में ग्रेप या ग्रेप रैजिन्स तथा लैटिन में विटिस्‌ विनिफेरा कहते हैं।
अंगूर के औषधि गुण : प्रत्येक 100 ग्राम अंगूर में लगभग 85.5 ग्राम पानी, 10.2 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 0.8 ग्राम प्रोटीन, 0.1 ग्राम वसा, 0.03 ग्राम कैल्शियम, 0.02 ग्राम फास्फोरस, 0.4 मिलीग्राम आयरन, 50 मिलीग्राम विटामिन-बी, 10 मिलीग्राम विटामिन-सी, 8.4 मिलीग्राम विटामिन-पी, 15 यूनिट विटामिन-ए, 100 से 600 मिलीग्राम टैनिन, 0.41-0.72 ग्राम टार्टरिक अम्ल पाया जाता है।
इसके अतिरिक्त सोडियम क्लोरॉइड, पोटेशियम क्लोरॉइड, पोटेशियम सल्फेट, मैग्निशियम तथा एल्युमिन जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी इसमें भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। अंगूर में पाई जाने वाली शर्करा पूरी तरह से ग्लूकोज से बनी होती है, जो कुछ किस्मों में 11 से 12 प्रतिशत तक होती है और कुछ में 50 प्रतिशत। यह शर्करा शरीर में पहुँचकर एनर्जी प्रदान करती है। इसलिए इसे हम एक आदर्श टॉनिक की तरह प्रयोग में लाते हैं। अंगूर का सेवन थकान को दूर कर शरीर को चुस्त-फुर्त व मजबूत बनाता है।
सभी बीमारियों में फायदेमंद : अंगूर में क्षारीय तत्व बढ़ाने की अच्छी क्षमता के कारण ही शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता, मोटापा, जोड़ों का दर्द, रक्त का थक्का जमना, दमा, नाड़ी की समस्या व त्वचा पर लाल चकत्ते उभरने आदि स्थितियों में इसका सेवन लाभकारी होता है।
अंगूर का सेवन, आँत, लीवर व पचान संबंधी अन्य रोगों, मुँह में कड़वापन रहना, खून की उल्टी होना, गुर्दे की कार्यक्षमता में कमी, कब्जियत, मूत्र की बामारी, अतिसार कृमि रोग, टीबी (क्षय रोग) आदि रोगों में विशेष लाभकारी होता है।
* यदि किसी ने धतूरा खा लिया हो, तो उसे अंगूर का सिरका दूध में मिलाकर पिलाने से काफी लाभ होता है। अंगूर मियादी बुखार, मानसिक परेशानी, पाचन की गड़बड़ी आदि भी काफी लाभकारी है।

* अंगूर में एक विशेष गुण यह भी है कि यह शरीर में मौजूद विषैले तत्वों को आसानी से शरीर से बाहर निकाल देता है। यह एक अच्छा रक्तशोधक(ब्लड प्यूरीफायर) व रक्त विकारों को दूर करने वाला फल है।
* अंगूर रक्त की क्षारीयता सन्तुलित करता है, क्योंकि रक्त में अम्ल व क्षार का अनुपात 20:80 होना चाहिए। यदि किसी कारणवश शरीर में अम्लता बढ़ा जाए, तो वह हानिकारक साबित होता है। अंगूर बढ़ती अम्लता को आसानी से कन्ट्रोल करता है।
* अंगूर का 200 ग्राम रस शरीर को उतनी ही क्षारीयता प्रदान करता है, जितना कि एक किलो 200 ग्राम बाईकार्बोनेट सोडा, हालाँकि सोडा इतनी अधिक मात्रा में लिया नहीं जा सकता।
* अंगूर के रस को कलई के बर्तन में पकाकर गाढ़ा करके सोते समय आँखों में लगाने से जाला, फूला आदि नेत्र रोगों दूर हो जाते हैं।
* अंगूर की बेल काटने से जो रस निकलता है, वह त्वचा रोगों में लाभकारी होता है।
* अंगूर के पत्तों का अर्क एक से तीन चम्मच तक लेने पर व बावासीर के मस्सों पर लगाने पर काफी लाभ मिलता है। 500 मिलीग्राम से एक ग्राम तक पत्तों की भस्म शहद से लेने से भी बवासीर में लाभ मिलता है।
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लाइफ स्टाइल बदलने से हेल्थ की कई प्रॉब्लम्स अपने आप चली जाती हैं। मसलन यदि आप देर तक सोने के आदी थे और अब जल्दी उठने लगे हैं तो डेफिनेटली आपकी हेल्थ में पॉजिटीव इम्प्रूवमेंट होगा। इसलिए दवाएँ छोड़ना हों तो दिनचर्या बदल डालिए।
हमें बहुत सारी महँगी दवाइयाँ खाकर भी अपनी बीमारी से मुक्ति नहीं मिल पाती। क्या आपकी बीमारी का इलाज सिर्फ दवाइयाँ हैं? नित नई ऊँचाइयों को छूने की अंधी दौड़ में अस्त-व्यस्त जीवन व अत्यधिक तनाव ही हमारे हिस्से में आता है। परिणामस्वरूप कार्यक्षमता घट जाती है। बीमारियाँ, मानसिक विकार, निराशा व खीज व्यक्ति को घेरने लगते हैं।
इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार हमारी जीवनशैली है। ये नतीजा है, स्वास्थ्य व जीवनशैली के बीच के असंतुलन का, परंतु हम बीमारी की जड़ को देखे बिना बस दवाइयाँ खाने पर विश्वास करते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि उच्च-रक्तचाप, मधुमेह, दिल की बीमारियाँ, हायपरकोलेस्ट्रोलेमिया मोटापा या जोड़ों का दर्द आदि इन बीमारियों की जड़ क्या है? उदाहरण के लिए यदि आप उच्च-रक्तचाप से पीड़ित हैं और रोज दवाइयाँ खा रहे हैं। यह आपके लिए हानिकारक है। इसकी शुरुआत कहाँ से होती है?
अनिद्रा, मोटापा, ध्रूमपान, शराब का सेवन, व्यायाम की कमी, तनाव व अनियमित तथा असंतुलित खानपान की आदतें, इसके लिए जिम्मेदार कारण हैं। हम आनुवंशिक कारणों को नहीं बदल सकते, परंतु बाकी के सारे कारणों का इलाज तो हमारे हाथ में है।
Tips for Youth
हम अपनी जीवनशैली में कुछ थोड़े से परिवर्तन करके अपनी बीमारियों से काफी हद तक मुक्ति पा सकते हैं। 1 गोली खाना बहुत आसान है बजाय जीवनशैली बदलने के, लेकिन गोली नुकसान पहुँचाती है जबकि दिनचर्या बदलने से आप एक ूबसूरत जिंदगी के मालिक बन जाते हैं। अपनी दिनचर्या में कुछ चीजें नियमित रूप से शामिल करें।
नियमित व्यायाम : 30-45 मिनट कोई भी एरोबिक एक्टिविटी करें। स्विमिंग, जॉगिंग, डांस, एक्सरसाइज, ब्रिस्क वॉक में से कोई भी एक्टिविटी आप कर सकते हैं।
पानी पिएँ - पानी शरीर में विषैले पदार्थ बाहर निकालने में मदद करता है। यह शरीर में पानी का स्तर बनाए रखने के साथ-साथ त्वचा को भी युवा एवं चिकनी बनाए रखता है। शरीर के तापमान को भी नियंत्रित करता है। कभी भी प्यास लगने का इंतजार न करें।
नियमित ब्रेकफास्ट करें- यह दिन का सबसे महत्वपूर्ण आहार है। यह आपको दिनभर कार्य करने की ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ आपकी एकाग्रता एवं याददाश्त बढ़ाता है। मांसपेशियों के तालमेल को बढ़ाता है। टाइप-2 डायबिटीज व दिल के रोगों के जोखिम को कम करता है। अपने नाश्ते में गेहूँ, जुवार, बाजरा, रागी, ब्राउन राइस, दलिया, कॉर्न फ्लेक्स, व्हीट फ्लेक्स या कोई भी एक अनाज शामिल करें।
फल खाएँ : रोज दिनभर में कम से कम 3 फल खाएँ। फाइबर के साथ-साथ ये आपको एंटीऑक्सीडेंट्स प्रदान करते हैं। फल पोटेशियम का सबसे अच्छा स्रोत है। सभी मौसमी फलों का आनंद लें।
दूध व उससे बने पदार्थ : रोज कम से कम 1 गिलास दूध पिएँ। अपने सुबह और शाम के भोजन में दही को शामिल करें। छाछ, पनीर इन्हें भी आहार में शामिल करें। छाछ में दूध की तुलना में कम वसा होती है। दही प्रोटीन व कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
सब्जियाँ खाएँ : अपने आहार में सभी सब्जियों को शामिल करें। ये विटामिंस, मिनरल्स, एन्टीऑक्सीडेंट्स के सबसे अच्छे स्रोत हैं।
अंकुरित अन्न : शाकाहारी भोजन में प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत है अंकुरित अनाज, इसे साफ करके खाना चाहिए।
पेय : चाय, कॉफी व शकर का प्रयोग सीमित मात्रा में करें। ये सभी मूत्रवर्धक होते हैं तथा अत्यधिक मात्रा में लेने पर शरीर में पानी की कमी होने लगती है।

एकाग्र होकर करें भोजन : टीवी या कम्प्यूटर के सामने बैठकर न खाएँ। अखबार व किताबें पढ़ते हुए खाना न खाएँ।
ध्यान करें : दिनभर में 15-20 मिनट का समय स्वयं के साथ बिताएँ। ध्यान करें, अपने किसी भी शौक को कम से कम 15-20 मिनट का वक्त दें। ये आपके तनाव को खत्म कर देगा। आप ऊर्जावान महसूस करेंगे।
जीवनशैली बदलें : प्रोफेशनल और सोशलाइफ के बीच संतुलन स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए जीवनशैली में परिवर्तन लाएँ। अपनी क्षमताओं का न केवल अधिकतम उपयोग करें बल्कि उनमें निरंतर बढ़ोतरी करें। जीवनभर सुखी और स्वस्थ रह सकें, इस पर जरूर विचार करें।
नींद- कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें। यह आपका प्राकृतिक टॉनिक है। आपकी आँखों के नीचे काले घेरों का एक कारण भरपूर नींद न लेना है। अनिद्रा के कारण तनाव, काले घेरे, उच्च रक्तचाप आदि बीमारियाँ होती हैं।
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वैसे तो शरीर में पानी की मात्रा सर्वाधिक रहती है, फिर भी हमें पानी की जरूरत होती है। बिलकुल फिट रहने हेतु पानी पीने के भी कुछ नियम होते हैं। हम कुछ खास नियम यहाँ बताना चाहेंगे-
* व्यायाम करने के तुरंत बाद या धूप में घूमकर आने के बाद पानी पीना वर्जित है।
* जब आपका पेट बिलकुल खाली हो और आप भोजन करने वाले हों, तब पानी पीने से पाचन शक्ति कमजोर होती है। भोजन के अंत में पेट भर पानी पीना हानिकारक होता है।
* पके फल, ककड़ी, खीरा, तरबूज और मेवे खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीते।
* सोकर उठने पर तुरंत पानी पीने से कुछ लोगों में जुकाम होने का भय रहता है अतः ऐसे लोग सुबह उठकर पानी न पिएँ ।
* चिकनाहट के व खट्टे पदार्थ खाने के बाद, चाय-दूध पीने, छींकने के बाद के तुरंत बाद पानी पीना हानिकारक है।
* सेक्स के तुरंत बाद पानी पीना वर्जित है।
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क्या यह सुनने-सुनते आपके कान पक गए हैं कि ज्यादा बातें करना अच्छी बात नहीं? ...तो यह भी सुन लीजिए कि वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि बातें करने से आपका दिमाग तेज होता है और मानसिक स्वास्थ्य बढ़िया रहता है।
माना जाता है, बातें बनाना बुरी बात है। लोग अक्सर कहते भी हैं, इस तरह बातें बनाने से बात नहीं बनेगी। लोग बातूनी लोगों को अक्सर व्यंग्य से इस तरह वाक्‌पटु कहते हैं मानो उन्हें चिढ़ा रहे हों। लेकिन बातें बनाना या ज्यादातर लोगों से संवाद स्थापित कर लेना न तो किसी बेवकूफी की निशानी है और न ही इससे कोई नुकसान है। भले ही लोग कहते हों कि बातें बनाने से कुछ नहीं होगा, मगर वैज्ञानिकों ने एक विस्तृत शोध के जरिए साबित किया है कि बातें बनाना न सिर्फ बुद्धिमान बनने का जरिया है, बल्कि निरंतर और हर तरह के लोगों से संवाद कला में माहिर होने वाले लोग जीनियस भी साबित होते हैं।
मिशिगन यूनिवर्सिटी (अमेरिका) ने एक विस्तृत शोध में पाया है कि जब आप रोजाना 10 मिनट किसी के साथ किसी भी विषय पर बातचीत करते हैं तो इससे न केवल आप धीरे-धीरे संवाद कला में माहिर होते जाते हैं, बल्कि इससे याददाश्त भी तेज होने लगती है और बुद्धिमत्ता भी बढ़ने लगती है। इस तरह याददाश्त और बुद्धिमत्ता को सक्रिय बनाए रखने के लिए लोगों के साथ बातचीत करना जरूरी है। यहाँ तक कि वर्ग पहेलियाँ भी इसके मुकाबले कम असरकारक हैं।
इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च ऑफ मिशिगन यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक ऑस्कर याबरी, जो इस शोध के साथ जुड़े थे, उनके मुताबिक दिमागी कसरत स्वास्थ्य के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी जिस्मानी कसरत। दिमागी कसरत का सबसे आसान और उर्वर तरीका है विभिन्न किस्म के लोगों के साथ प्रतिदिन कम-से-कम 10 मिनट बातचीत करना।

शोध में मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि मानसिक कार्यप्रणाली और सामाजिक व्यवहार में सीधा संबंध होता है। इसलिए अगर सामाजिक रूप से आप सक्रिय रहते हैं तो मानसिक रूप से भी स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं। इसे साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर शोध किया गया और जो लोग प्रतिदिन या हफ्ते में कम-से-कम 4 बार नियमित रूप से लोगों के साथ 10 से 20 मिनट का संवाद स्थापित करते थे, वे बुद्धिमान और मानसिक रूप से ज्यादा सचेत पाए गए, बनिस्बत उन लोगों के, जो लोगों से मिलने-जुलने और संवाद करने से कतराते हैं तथा अपने आप में ही मस्त रहते हैं।
शोध में यह भी साबित हुआ कि संवाद करने में उदासीन रहने वाले लोग, फिर चाहे वे प्रखर वैज्ञानिक ही क्यों न हों, उनकी याददाश्त कमजोर हो जाती है। यह महज संयोग नहीं है कि दुनिया के ज्यादातर महान वैज्ञानिकों को कमजोर स्मृति का शिकार पाया गया है।
शायद इसके पीछे कारण यही है कि ये वैज्ञानिक आमतौर पर अपनी दुनिया में ही खोए रहते हैं। अपने काम में डूबे रहते हैं। इससे अपने काम में तो ये माहिर होते हैं, लेकिन अपने क्षेत्र के हीरो जीवन के क्षेत्र में जीरो साबित हो जाते हैं। दूसरी तरफ पाया गया है कि ऐसे लोग जो अक्सर लोगों के साथ संवाद-संपर्क में रहते हैं, उनकी स्मृति काफी तेजी होती है।
यही वजह है कि राजनेताओं, टेलीफोन ऑपरेटरों, कंपनियों के स्वागताधिकारियों, कंडक्टरों, दुकानदारों और उन तमाम पेशे के लोगों की याददाश्त काफी तेज होती है, जो दिन में कई बार अलग-अलग तरह के लोगों के संवाद-संपर्क में आते हैं।
इस संवाद से एक बड़ा फायदा यह होता है कि इससे विवरण को समझने के नए कोण हासिल हो जाते हैं और विभिन्न दृष्टिकोणों से रू-ब-रू होने पर अपने दृष्टिकोण की गहराई का पता चल जाता है। साथ ही उसे दुरुस्त करने का रास्ता भी दिख जाता है। सवाल है आखिर अलग-अलग या ज्यादातर लोगों से संवाद रखने से स्मृति कैसे तीव्र होती है और बुद्धिमत्ता में इजाफा क्यों होता है?
व्यापक शोध से जो निष्कर्ष निकलकर आए हैं उनके मुताबिक विभिन्न किस्म के लोगों के साथ विभिन्न किस्म का संवाद स्थापित करने वाले लोगों में बिम्बों की रचना तीव्र होती है। जब भी हम किसी से कोई बात सुनते हैं तो दिमाग उस बात को बाद में भी याद रखने के लिए उसे एक छवि में बदल देता है और फिर वह छवि या बिम्ब दिमाग में स्टोर हो जाता है। जो लोग बहुत कम लोगों से सामाजिक सरोकार रखते हैं, उन लोगों में बिम्बों की रचना तीव्रता से नहीं होती। लेकिन जो लोग बहुत लोगों से संवाद करते हैं उनमें बिम्बों का बनना तेज होता है और ये बिम्ब ज्यादा मजबूत होते हैं।
संवाद करने में लोग तीव्रता से सीखते हैं और अपनी समझ को तीव्रता से सुधारते भी जाते हैं। इसलिए किसी के साथ संवाद कायम करने में दो लाभ होते हैं। एक तो समझ बढ़ती है, दूसरी स्मृति बढ़ती है। समझ बढ़ने से सीखने की रफ्तार भी तेज होती है। एक और महत्वपूर्ण बात होती है जब हम किसी के साथ संवाद कायम करते हैं तो फिर चाहे वह हमारा कितना ही नजदीकी क्यों न हो, संवाद करते समय हममें एक किस्म की प्रतिद्वंद्विता आ जाती है और हम हर हालत में जीतना चाहते हैं। इस कारण हम संवाद में सजग हो जाते हैं और अपनी अधिकतम तर्क क्षमता का इस्तेमाल करते हैं।
इसके विरुद्ध जब हम लोगों से मिलते-जुलते नहीं, उनसे बातें नहीं करते तो हमारी अपनी समझ भी गैर आजमाई किस्म की समझ बन जाती है। किसी के साथ संवाद करना दरअसल अपनी समझ को अनुमान के दायरे से निकालकर मान्यता के मैदान में उतार देना है। अगर ज्यादातर लोग उसकी काट नहीं ढूँढ पाते तो आपकी समझ जीत जाती है और अगर लोग आपकी समझ को टिकने नहीं देते तो आपको अपनी समझ को और बेहतर व तर्कपूर्ण बनाने की चुनौती हासिल होती है।
इसलिए सामाजिक रूप से सक्रिय रहना मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरह से स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इससे बौद्धिक क्षमता भी बढ़ती है, अतः जब कोई कहे कि क्या बातों में लगे रहते हैं? तो उसकी बात को अनसुनी कर दें और बातों में मशगूल रहें।
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राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के पशु शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के अनुसार पशुओं से अधिक दूध लेने की प्रक्रिया में ऑक्सीटोन हारमोन का प्रयोग पशु तथा मानव दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन इस विषय में परिपक्व जानकारी के अभाव में भी अनुसंधान जारी हैं। लगातार इंजेक्शन देने से पशु ऑक्सीटोसिन का आदी हो जाता है और दूध में सोडियम व नमक की मात्रा भी बढ़ जाती है।
ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन पशुओं के लिए तो जानलेवा है ही, यह इंजेक्शन लगाने के बाद पशुओं से लिया जाने वाला दूध इंसानों के लिए भी घातक साबित हो रहा है। पशुपालक अधिक आय की लालच में स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

दरअसल जिन पशुओं को ऑक्सीटोसिन दिया जाता है, उनके दूध के उपयोग से महिलाओं में बार-बार गर्भपात और स्तन कैंसर होना, लड़कियों का उम्र से पहले ही वयस्क होना, बच्चों की आँखें कमजोर होना और फेफड़ों व मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव जैसी समस्याएँ आती हैं।

भारत सरकार की अधिसूचना जीएसआर 282 (ई) 16 जुलाई 1996 के तहत यह दवा एच श्रेणी में आती है और इसकी खुली बिक्री संभव नहीं है। इसके बावजूद पान की दुकान से लेकर किराने की दुकानों तक हर कहीं ऑक्सीटोसिन के एम्प्यूल खुलेआम बिक रहे हैं।
ऑक्सीटोसिन के उपयोग से किसी पशु में दूध की मात्रा 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, लेकिन उसमें कैल्शियम तथा वसा की कमी हो जाती है, हड्डियों में विकार पैदा हो जाते हैं। इसके उपयोग से साइनस जैसे कोमल टिश्यू में संक्रमण की प्रबल संभावनाएँ पैदा हो जाती हैं।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के ताजा अध्ययन के अनुसार ऑक्सीटोसिन के इस्तेमाल से पशुओं के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा इससे दूध की गुणवत्ता बाधित होती है, जो पशु एवं मनुष्य के लिए हानिकारक है।
संस्थान के पशु शरीर क्रिया विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के अनुसार पशुओं से अधिक दूध लेने की प्रक्रिया में ऑक्सीटोसिन हारमोन का प्रयोग पशु तथा मानव दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन इस विषय में परिपक्व जानकारी के अभाव में भी अनुसंधान जारी है। लगातार इंजेक्शन देने से पशु ऑक्सीटोसिन का आदी हो जाता है और दूध में सोडियम व नमक की मात्रा भी बढ़ जाती है।
दूध के संघटन में परिवर्तन आ रहा है। बाजार में घटिया स्तर के सस्ते ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन उपलब्ध हैं। इस इंजेक्शन का सस्ता होना व इसे लगाने का आसान तरीका होना इस हारमोन के अंधाधुँध उपयोग का कारण है। चिकित्सकों का कहना है कि सामान्य और स्वच्छ दूध की प्राप्ति के लिए पशु को बिना तनाव दिए प्राकृतिक विधि से ही दूध दोहना चाहिए।
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