आज विश्व अस्थमा दिवस है। यूँ तो कई दिवस आते हैं और हम उनके बारे में चर्चा करके भूल भी जाते हैं, पर आज का दिन याद रखना जरूरी है, क्योंकि सवाल साँसों का है। अगर इस दिन की गंभीरता को न समझा तो साँसें कभी भी थम सकती हैं। न चाहते हुए भी दुनियाभर में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो अपने हिस्से की साँस भी पूरी तरह नहीं ले पाते।

आखिर इसकी क्या वजह है, कैसे अस्थमा के रोगियों को कम किया जा सकता है... जैसे विषयों पर चिकित्सकों द्वारा दी गई जानकारी हम आप तक पहुँचा रहे हैं। शहर में धुएँ और धूल के कारण अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। यही नहीं, पेट्रोल पंप पर काम करने वाला हर दसवाँ कर्मचारी अस्थमा की चपेट में है। इसकी सबसे प्रमुख वजह है प्रदूषण के बीच कार्य करना। इस रोग को रोका जा सकता है, जरूरत है सावधानी की।

.धूम्रपान न करें, स्वच्छ वातावरण में रहें
.हरियाली के बीच टहलें, व्यायाम, स्वीमिंग करें
.बीमारी होने पर ठंडे व खट्टे भोजन से परहेज करें
.धूल, धुआँ, प्रदूषण से बच्चों को बचाएँ
.नियमित रूप से जाँच कराएँ
.आशंका होने पर संबंधित चिकित्सक से ही जाँच कराएँ
.धुआँ, धूल से बचने के लिए मॉस्क का प्रयोग करें
कुछ तथ्
. भारत में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगभग 15 से 20 करोड़
. लगभग 12 प्रतिशत भारतीय शिशु अस्थमा से पीड़ित
. विश्वभर में अस्थमा के कारण वक्त से पहले ही लगभग 1 लाख 80 हजार मौतें हो जाती हैं
. इंदौर में अस्थमा के रोगियों की संख्या लगभग 5 से 10 प्रतिशत है
विश्व अस्थमा दिवस

प्रदूषण ही है मुख्य कारण
डॉ. प्रमोद झँवर के अनुसार अस्थमा के कारणों की चर्चा की जाए तो बढ़ती धूल व धुआँ और घटती हरियाली प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति, धूल के उठते गुबार, औद्योगिक इकाइयों व वाहनों से होने वाला वायु प्रदूषण भी अस्थमा के रोगियों की संख्या बढ़ा रहा है। इन कारणों से हवा में घुलती कार्बन डाई ऑक्साइड व सल्फर डाई ऑक्साइड श्वसन संबंधी परेशानियों को बढ़ावा देती हैं। खान-पान की बात करें तो जंकफूड, टीनफूड, खाद्य पदार्थों में रंगों का होना व तबीयत बिगड़ने पर उपचार नहीं कराना रोग बढ़ाने की वजहों में शामिल हैं।

सक्षम है चिकित्सा विज्ञान
डॉ. हँसमुख गाँधी का मानना है कि आज इस बीमारी को होने से पहले ही रोका जा सकता है और यदि श्वास संबंधी रोग हो भी जाए तो उसे दूर किया जा सकता है। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान इस रोग से लड़ने में पूर्णतः सक्षम है। अब ऐसी दवाइयाँ और उपचार पद्धति भी आ चुकी हैं जिसके दुष्प्रभाव शरीर पर बिलकुल नहीं पड़ते। इसके लिए आवश्यक है लोगों का जागरूक होकर उपचार कराना। बात अगर बीमारी की रोकथाम की करें तो सरकार को चाहिए कि हरियाली बढ़ाई जाए और सभी जगह एक साथ सड़कों की खुदाई करने के बजाए क्रमवार कार्य किया जाए ताकि धूल की समस्या रोग का कारण न बन पाए।

बचपन से ही हो जाती है शुरुआत
डॉ. अशोक बाजपेयी के अनुसार अस्थमा की शुरुआत बचपन से ही जाती है। अमूमन 4 से 11 साल की उम्र से ही यह समस्या शुरू हो जाती है। इसकी वजह एलर्जी, प्रदूषण और वंशानुगत हो सकती है। बच्चों को इससे बचाने के लिए घर के भीतर किसी तरह का प्रदूषण न होने दें, उनके कमरों को साफ रखें, बच्चों को शुद्ध हवा में ले जाएँ, हानिकारक खिलौने, बॉक्सनुमा पलंग, जंकफूड आदि से बच्चों को दूर रखें।

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