लाल-लाल ताजे चुकंदर से ना सिर्फ आप सेहतमंद रहते हैं बल्कि यह आपकी ब्यूटी में भी चार चाँद लगाता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसके सेवन से हिमोग्लोबिन बढ़ता है। ब्लड प्यूरीफाई होता है।
एक नए शोध से यह उजागर हुआ है कि चुकंदर का जूस सेहत के लिए सबसे फायदेमंद होता है। इसके जूस की यह विशेषता है कि इससे स्टेमिना में बढ़ता है। खासकर तब जब आप एक्सरसाइज कर के थक गए हों। इस पेय से व्यायाम करते समय थकान कम अनुभव होती है। यह व्यायाम की अवधि 16 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
एक्सिटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार चुकंदर के जूस में पाए जाने वाले नाइट्रेट कसरत के दौरान आक्सीजन की अधिक मात्रा शरीर में जाने से रोकता है। जिससे थकान कम महसूस होती है। शोधकर्ताओं ने इसके प्रमाण के लिए कुछ एक्सपेरिमेंट भी किए।
परीक्षण दौरान 19 से 38 साल के आठ लोगों को शामिल किया गया। साइकिल एक्सरसाइज करते हुए उन्हें लगातार छह दिनों तक चुकंदर का 500 एमएल जूस पिलाया गया। एक दूसरे परीक्षण में साइकिल एक्सर्साइज के दौरान प्लेसबो नामक पेय दिया गया। दोनों की तुलना करने पर पाया गया कि चुकंदर का जूस प्लेसबो नामक पेय से अधिक प्रभावी है। चुकंदर के जूस से व्यायाम की अवधि में 92 सेकंड की वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा चुकंदर का जूस व्यायाम के दौरान रक्तचाप स्थिर रखता है।
थके हुए जीवन में ताजगी के अहसास को बनाए रखने में चुकंदर का जूस असरकारी सिद्ध होता है। एक अन्य शोध यह साबित करने में जुटा है कि स्किन और आँखों की सुंदरता के लिए चुकंदर खासा लाभकारी है। त्वचा को जवाँ, चमकदार, चिकनी और गुलाबी बनाए रखने में चुकंदर का जवाब नहीं। उधर भारतीय मूल के एक शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में कहा है कि दिल का दौरा पड़ने का जोखिम कम करने के लिए यह अचूक औषधि है ।
लंदन के क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के अमृत्य आहलूवालिया के नेतृत्व में एक दल ने पाया कि चुकंदर के जूस में मौजूद नाइट्रेट नामक रसायन रक्त के दबाव को काफी कम कर देता है। इससे दिल की बीमारी अथवा दौरे का जोखिम कम होता है। चुकंदर में प्राकृतिक तौर पर नाइट्रेट होता है जिससे रक्त में नाइट्रिक आक्साइड गैस बनती है जो रक्त वाहिकाओं और धमनियों को चौड़ा कर रक्त दबाव कम करती है। ‘हाइपरटेंशन ’ पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चूँकि हाई ब्लडप्रैशर दिल की बीमारी और किडनी फेल होने का मुख्य कारण है इसलिये चुकंदर की अहमियत को स्वीकार करना होगा।
एक नए शोध से यह उजागर हुआ है कि चुकंदर का जूस सेहत के लिए सबसे फायदेमंद होता है। इसके जूस की यह विशेषता है कि इससे स्टेमिना में बढ़ता है। खासकर तब जब आप एक्सरसाइज कर के थक गए हों। इस पेय से व्यायाम करते समय थकान कम अनुभव होती है। यह व्यायाम की अवधि 16 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
एक्सिटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार चुकंदर के जूस में पाए जाने वाले नाइट्रेट कसरत के दौरान आक्सीजन की अधिक मात्रा शरीर में जाने से रोकता है। जिससे थकान कम महसूस होती है। शोधकर्ताओं ने इसके प्रमाण के लिए कुछ एक्सपेरिमेंट भी किए।
परीक्षण दौरान 19 से 38 साल के आठ लोगों को शामिल किया गया। साइकिल एक्सरसाइज करते हुए उन्हें लगातार छह दिनों तक चुकंदर का 500 एमएल जूस पिलाया गया। एक दूसरे परीक्षण में साइकिल एक्सर्साइज के दौरान प्लेसबो नामक पेय दिया गया। दोनों की तुलना करने पर पाया गया कि चुकंदर का जूस प्लेसबो नामक पेय से अधिक प्रभावी है। चुकंदर के जूस से व्यायाम की अवधि में 92 सेकंड की वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा चुकंदर का जूस व्यायाम के दौरान रक्तचाप स्थिर रखता है।
थके हुए जीवन में ताजगी के अहसास को बनाए रखने में चुकंदर का जूस असरकारी सिद्ध होता है। एक अन्य शोध यह साबित करने में जुटा है कि स्किन और आँखों की सुंदरता के लिए चुकंदर खासा लाभकारी है। त्वचा को जवाँ, चमकदार, चिकनी और गुलाबी बनाए रखने में चुकंदर का जवाब नहीं। उधर भारतीय मूल के एक शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में कहा है कि दिल का दौरा पड़ने का जोखिम कम करने के लिए यह अचूक औषधि है ।
लंदन के क्वीन मेरी यूनिवर्सिटी के अमृत्य आहलूवालिया के नेतृत्व में एक दल ने पाया कि चुकंदर के जूस में मौजूद नाइट्रेट नामक रसायन रक्त के दबाव को काफी कम कर देता है। इससे दिल की बीमारी अथवा दौरे का जोखिम कम होता है। चुकंदर में प्राकृतिक तौर पर नाइट्रेट होता है जिससे रक्त में नाइट्रिक आक्साइड गैस बनती है जो रक्त वाहिकाओं और धमनियों को चौड़ा कर रक्त दबाव कम करती है। ‘हाइपरटेंशन ’ पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चूँकि हाई ब्लडप्रैशर दिल की बीमारी और किडनी फेल होने का मुख्य कारण है इसलिये चुकंदर की अहमियत को स्वीकार करना होगा।
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हमारी बॉडी का स्ट्रक्चर, बीमारियों के अटैक और हमारी रेसिस्टेंट पॉवर यह सब हमारी विल पॉवर पर डिपेंड करते हैं। यह विल पॉवर हमारे विचारों में ही जन्म लेता है, वहीं विकसित होता है। हमारे सोचने का एटिट्यूड हमारे शरीर में ऐसे केमिकल उत्पन्न करता है जो हमारी हेल्थ के लिए पूरी तरह रिस्पॉन्सिबल होते हैं। कैंसर जैसे रोग से भी इसी विल पॉवर से छुटकारा पाया जा सकता है।
हमारी विचारधारा किस हद तक बीमारियों से जूझ सकती है, इस बारे में कार्ल सिमोंटोन नामक साइंटिस्ट ने सोच का एक इमेजिनेशन पिक्चर प्रस्तुत किया है और स्टडी के बाद उसके रिजल्ट से भी वैज्ञानिकों को अवगत कराया है। सिमोंटोन के अनुसार आप अपनी आँखें बंद कीजिए, टेंशन फ्री हो जाइए और इमेजिन कीजिए कि आप एक मजबूत दीवारों वाले किले के सुंदर बड़े हरे-भरे मैदान में लेटे हैं। इस विशाल किले के पार्क के हर दरवाजे पर सैनिक तैनात हैं।
सफेद बड़े ट्रैनी कुत्ते हिफाजत के लिए इधर-उधर घूमते हुए आपकी सिक्योरिटी को दूर-दूर तक सूँघ रहे हैं। अचानक उन सिक्योरिटी डॉग में से कोई एक, घुसपैठिए को पहचान लेता है, जो कि भीतर घुसने की कोशिश कर रहा है। कुत्तों की सारी फौज उस पर टूट पड़ती है।
वह घुसपैठिया भागने की कोशिश कर रहा है कि अचानक सिक्योरिटी सैनिक की गोली से वह घायल हो जाता है। चुस्त कुत्ते उसके चिथड़े कर डालते हैं और जब हड्डियों के अलावा शेष कुछ नहीं रहता शेष कुछ नहीं रहता है तो मुँह में हड्डियाँ दबाकर वे पार्क से बाहर चले जाते हैं।
हमारी विचारधारा किस हद तक बीमारियों से जूझ सकती है, इस बारे में कार्ल सिमोंटोन नामक साइंटिस्ट ने सोच का एक इमेजिनेशन पिक्चर प्रस्तुत किया है और स्टडी के बाद उसके रिजल्ट से भी वैज्ञानिकों को अवगत कराया है। सिमोंटोन के अनुसार आप अपनी आँखें बंद कीजिए, टेंशन फ्री हो जाइए और इमेजिन कीजिए कि आप एक मजबूत दीवारों वाले किले के सुंदर बड़े हरे-भरे मैदान में लेटे हैं। इस विशाल किले के पार्क के हर दरवाजे पर सैनिक तैनात हैं।
सफेद बड़े ट्रैनी कुत्ते हिफाजत के लिए इधर-उधर घूमते हुए आपकी सिक्योरिटी को दूर-दूर तक सूँघ रहे हैं। अचानक उन सिक्योरिटी डॉग में से कोई एक, घुसपैठिए को पहचान लेता है, जो कि भीतर घुसने की कोशिश कर रहा है। कुत्तों की सारी फौज उस पर टूट पड़ती है।
वह घुसपैठिया भागने की कोशिश कर रहा है कि अचानक सिक्योरिटी सैनिक की गोली से वह घायल हो जाता है। चुस्त कुत्ते उसके चिथड़े कर डालते हैं और जब हड्डियों के अलावा शेष कुछ नहीं रहता शेष कुछ नहीं रहता है तो मुँह में हड्डियाँ दबाकर वे पार्क से बाहर चले जाते हैं।
आप इस स्वप्न चित्र यानी इमेजिनेशन पिक्चर को देखने के बाद जाग जाते हैं और नेचरली अपने को ज्यादा फ्रैश एवं रिलैक्स्ड फील करते हैं। अब अगर इस स्वप्न का रिव्यू किया जाए तो घुसपैठिया और कोई नहीं था, वह था कैंसर। सिक्योरिटी सैनिक की गोलियाँ थीं कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी और सिक्योरिटी सैनिक थे आपके शरीर के सुरक्षा तंत्र के डिफेंस एलिमेंट।
सिमोंटोन के अनुसार जब इस प्रकार की पॉजिटिव सोच सीरियस पैशेंट में डेवलेप की गई तो इस सोच के बड़े ही चमत्कारी प्रभाव हुए। पहले तो सिमोंटोन के इस एक्सपिरिमेंट को वैज्ञानिकों ने गंभीरता से न लेकर इसे महज एक संयोग भर माना मगर, निरंतर उसके सक्सेसफुल रिजल्ट ने अंततः वैज्ञानिकों को आकर्षित कर ही लिया।
कई डॉक्टरों ने सिमोंटोन के डायरेक्शन व ट्रेनिंग में लगभग एक दर्जन कैंसर के गंभीर रोगियों का उपचार किया और उन्हें दुबारा निरोग जीवन प्रदान किया। हाँ, यह बात अवश्य है कि कुछ डॉक्टरों की यह भी मान्यता थी कि केवल सिमोंटोन की सोच चिकित्सा ही नहीं बल्कि साथ-साथ चल रहे उपचार के प्रभाव को भी न नकारा जाए।
उनका मत था कि मात्र फीजिकल ट्रीटमेंट ही रोग से मुक्ति के लिए पर्याप्त नहीं हुआ करता है। शरीर के साथ-साथ मन का उपचार भी बहुत जरूरी है। अपने ट्रीटमेंट को उन्होंने कंप्लीट ट्रीटमेंट बताया था। वे रोगी के फीजिकल, मैंटल एवं सोशल तीनों लेवल के ट्रीटमेंट के समर्थक थे।
सिमोंटोन ने बताया कि ऐसे रोगियों को जिन्हें अन्य डॉक्टरों ने एक वर्ष से अधिक जीवन असंभव बताया था, उन्हें बीस वर्ष तक जीवित देखा। इसका कारण उनकी स्ट्रॉन्ग विल पॉवर थी, जिससे बीमार मनुष्य ने अपनी उम्र पर विजय प्राप्त की।
हमारे विचार व कल्पनाएँ हमारे शरीर की बायलॉजिकल केमिकल प्रोसेस को एक्टिव बनाती हैं और इन एक्टिव वेरिएबल्स के माध्यम से ही संदेश मस्तिष्क सेल तक पहुँचते हैं, जहाँ से यह पूरे शरीर में फैलकर उसे एक इफेक्टिव मेडिकल क्वॉलिटी प्रदान करते हैं।
जहाँ एक ओर कुछ डॉक्टर इस नए रिसर्च को लोकप्रिय बनाने में जुटे हैं वहीं दूसरी ओर अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने इस थेरेपी का विरोध भी किया। अमेरिका में इन थेरेपी को एडवांस समझा जा रहा है और पीएनआई अर्थात साइको न्यूरो इम्यूनोलॉजी बिहेवियर ट्रीटमेंट तथा न्यूरो इम्यूनो मोडयूलेशन नाम से जाना जाता है।
सिमोंटोन ने बताया है कि ब्रैन केमिकल्स न केवल इम्यून सिस्टम को कंट्रोल करता है बल्कि इम्यून सिस्टम से कम्यूनिकेशन भी रखने की क्षमता रखता है। ये केमिकल मैसेज पूरे शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और ट्यूमर्स के संबंध में पूरी इन्फॉर्मेशन देते हैं।
इन्फेक्शन के दौरान इम्यून सेल्स न केवल बैक्टीरिया से लड़ती हैं बल्कि ब्रैन की तरह ही हार्टबीट और बॉडी टेम्प्रैचर को कंट्रोल करती हैं। यह इम्यून सेल्स (प्रतिरक्षा कोशिकाएँ) ब्रैन के इमोशन्स और कॉन्शियस के सेंटर से भी बतियाती हैं और उन्हें यह समझाती है कि बीमारी के दौरान क्यों रोगी परेशान हो जाता है, उसकी मैंटल कंडीशन क्यों विकृत होती है और रोग से लड़ने की शक्ति क्यों कम हो जाती है। सिमोंटोन का यह विचार वैज्ञानिक क्षेत्रों में गंभीरता से लिया जा रहा है व इस विषय पर अच्छी खासी बहस की जा रही है।
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कैंसर से डर कैसा, अब मेलानोमस करेगा मुकाबला
Shweta Pandey | 7:06 AM |
breast cancer
,
cancer treatment
अब कैंसर जैसे खतरनाक रोग इंसान को अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाएंगे। चिकित्सकों ने इंसान के शरीर में ही मौजूद मेलानोमस नामक ट्यूमर को ढूंढ निकाला है जो कैंसर से छुटकारा दिलाएगा। मेलानोमस हमारे शरीर का महत्वपूर्ण ट्यूमर है। कैंसर से पीड़ित होने पर जहां शरीर के अन्य हिस्से इसकी चपेट में आ जाते हैं, वहीं मेलानोमस पूरी तरह सुरक्षित रहता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विंसेजों केरूडोंलो अपने सहयोगियों के साथ इस अध्ययन में जुट गए हैं कि किस प्रकार कैंसर के आक्रमण से यह ट्यूमर खुद को बचा लेता है।
शरीर का इम्यून सिस्टम सभी प्रकार के संक्रमणों से लगातार लड़ने और नई कोशिकाओं को बनाने की प्रक्रिया में जुटा रहता है। इस सतत प्रक्रिया में न्यट्रोफिल नामक कोशिका की अहम भूमिका है। न्यूट्रोफिल पूरी तरह खास एंजाइम्स से भरा रहता है। यह हानिकारक कोशिकाओं को खत्म कर उसी समय नई कोशिका का निर्माण करता है। कई बार दोस्ताना लड़ाई में हितकारी कोशिकाओं के खत्म होने की आशंका रहती है। उस समय इम्यून सिस्टम प्रोटीन मेसेंजर भेज कर कोशिका नुकसान होने से बचाता है।
परेशानी यह है कि इस लड़ाई में इसमें इतने सारे कोड उपयोग किए जाते हैं कि दुश्मन ट्यूमर इसे तोड़ सकता है। विंसेजो की टीम ने पता लगाया है कि मेलानॉमस भी लड़ाई रोकने वाले प्रोटीन मेसेंजर निर्माण करता है। सेरम आर्मील्वाड ए (एसएए) नामक यह प्रोटीन लड़ाई के समय न्यूट्रोफिल्स रोकने का संदेश देता है। दूसरे शब्दों में मेलानोमस शरीर को लाभकारी कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाने में मदद करती है। पर, इसका हानिकारक पहूल यह है कि एसएए किलर टी सेल को प्रभावित करता है। टी सेल एक नेचरल किलर है।
ट्यूमर क्या है?
सामान्यतः इंसान के शरीर में कोशिकाएं बढ़ती और विभाजित होती रहती है। स्वस्थ शरीर के रख-रखास के लिए इनकी आवश्यकता होती है। जब हमारे शरीर को इसकी जरूरत नहीं होती और कोशिकाएं खत्म होने के समय पर खत्म नहीं होती तो नई कोशिकाएं पैदा हो जाती है। यही अतिरिक्त कोशिकाएं एक जाल के रूप में जमा हो जाती है, जिन्हें ट्यूमर कहते हैं। ट्यूमर लाभकारी और नुकसानदायक दोनों होते हैं। उनको प्रायः निकाला जा सकता है और अधिकांश मामलों में यह फिर पैदा नहीं होते हैं। नुकसानकारी ट्यूमर कैंसर होते हैं। ये कोशिकाएं असमान्य होती है और अनियंत्रित रूप में विभाजित होती रहती हैं। कैंसर की कोशिकाएं आक्रामक होकर आसपास के जाल को खत्म कर देती है। कैंसर की कोशिकाएं ट्यूमर से अलग होकर रक्तधारा प्रणाली में भी प्रवेश कर सकती है। रक्त प्रणाली के द्वारा यह शरीर के अन्य भागों में पहुंचकर नये ट्यूमर को जन्म देता है। कैंसर फैलने की यह प्रक्रिया मेटास्टेसिस कहलाती है।
शरीर का इम्यून सिस्टम सभी प्रकार के संक्रमणों से लगातार लड़ने और नई कोशिकाओं को बनाने की प्रक्रिया में जुटा रहता है। इस सतत प्रक्रिया में न्यट्रोफिल नामक कोशिका की अहम भूमिका है। न्यूट्रोफिल पूरी तरह खास एंजाइम्स से भरा रहता है। यह हानिकारक कोशिकाओं को खत्म कर उसी समय नई कोशिका का निर्माण करता है। कई बार दोस्ताना लड़ाई में हितकारी कोशिकाओं के खत्म होने की आशंका रहती है। उस समय इम्यून सिस्टम प्रोटीन मेसेंजर भेज कर कोशिका नुकसान होने से बचाता है।
परेशानी यह है कि इस लड़ाई में इसमें इतने सारे कोड उपयोग किए जाते हैं कि दुश्मन ट्यूमर इसे तोड़ सकता है। विंसेजो की टीम ने पता लगाया है कि मेलानॉमस भी लड़ाई रोकने वाले प्रोटीन मेसेंजर निर्माण करता है। सेरम आर्मील्वाड ए (एसएए) नामक यह प्रोटीन लड़ाई के समय न्यूट्रोफिल्स रोकने का संदेश देता है। दूसरे शब्दों में मेलानोमस शरीर को लाभकारी कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाने में मदद करती है। पर, इसका हानिकारक पहूल यह है कि एसएए किलर टी सेल को प्रभावित करता है। टी सेल एक नेचरल किलर है।
ट्यूमर क्या है?
सामान्यतः इंसान के शरीर में कोशिकाएं बढ़ती और विभाजित होती रहती है। स्वस्थ शरीर के रख-रखास के लिए इनकी आवश्यकता होती है। जब हमारे शरीर को इसकी जरूरत नहीं होती और कोशिकाएं खत्म होने के समय पर खत्म नहीं होती तो नई कोशिकाएं पैदा हो जाती है। यही अतिरिक्त कोशिकाएं एक जाल के रूप में जमा हो जाती है, जिन्हें ट्यूमर कहते हैं। ट्यूमर लाभकारी और नुकसानदायक दोनों होते हैं। उनको प्रायः निकाला जा सकता है और अधिकांश मामलों में यह फिर पैदा नहीं होते हैं। नुकसानकारी ट्यूमर कैंसर होते हैं। ये कोशिकाएं असमान्य होती है और अनियंत्रित रूप में विभाजित होती रहती हैं। कैंसर की कोशिकाएं आक्रामक होकर आसपास के जाल को खत्म कर देती है। कैंसर की कोशिकाएं ट्यूमर से अलग होकर रक्तधारा प्रणाली में भी प्रवेश कर सकती है। रक्त प्रणाली के द्वारा यह शरीर के अन्य भागों में पहुंचकर नये ट्यूमर को जन्म देता है। कैंसर फैलने की यह प्रक्रिया मेटास्टेसिस कहलाती है।
खुशखबरी, स्तन कैंसर मरीजों के लिए आई नई दवा
Shweta Pandey | 6:38 AM |
breast cancer
,
breast cancer cells
,
developing breast cancer
,
स्तन कैंसर
स्तन कैंसर मरीजों के लिए एक खुशखबरी है। स्तन कैंसर के बेहतर इलाज के लिए फ्लोरिडा स्थित मायो क्लीनिक के शोधकर्ताओं ने एक नई दवा बनाई है। इस नई दवा के बारे में प्रमुख शोधकर्ता एडिथ परेज ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई दवा का नाम टी-डीएम1 है, जो दो दवाओं के मिश्रण से बनाई गई है।
कैंसर के इलाज के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवाओं में इस तरह मिश्रण कर बनाई गई यह पहली दवा है। टी-डीएम1 को ट्रांसतुजुमाब और कीमोथेरेपी एजेंट डीएम1 के मिश्रण से बनाया गया है। ये दोनों दवाएं पहले से ही कैंसर के इलाज में प्रयोग में लाई जाती हैं। प्रो. परेज ने बताया कि कैंसर के क्षेत्र में पहली बार इस तरह की कोई दवा बनाई गई है और यह अन्य दवाओं के मुकाबले ज्यादा प्रभावी भी है।
परेज ने बताया कि स्तन कैंसर रोगियों में ट्यूमर को समाप्त करने में उनकी यह नई दवा बहुत कारगर है। इसके लिए उन्होंने इसकी चिकित्सीय जांच भी की है। इसके लिए उन्होंने 137 स्तन कैंसर पीड़ित मरीजों को शामिल किया। मरीजों को दो वर्गों में बांटने के बाद उन्होंने लगातार छह महीनों तक मरीजों को टी-डीएम1 और ट्रांसतुजुमाब दवा खिलाई। इसके बाद उन्होंने पाया कि केवल ट्रांसतुजुमाब दवा खाने वाले 41 फीसदी मरीजों को फायदा हुआ, जबकि टी-डीएम1 खाने वाले 48 फीसदी मरीजों को तत्काल फायदा हो रहा था।
परेज ने बताया कि यह दवा उन मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद है, जिन्हें अन्य ट्रीटमेंट से फायदा नहीं मिल रहा हो। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कैंसर मरीजों के लिए स्टेज-3 काफी खतरनाक होता है, लेकिन इसके खात्मे के लिए भी उनकी टीम एक शोध में जुटी है और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा।
कैंसर के इलाज के लिए उपयोग में लाई जाने वाली दवाओं में इस तरह मिश्रण कर बनाई गई यह पहली दवा है। टी-डीएम1 को ट्रांसतुजुमाब और कीमोथेरेपी एजेंट डीएम1 के मिश्रण से बनाया गया है। ये दोनों दवाएं पहले से ही कैंसर के इलाज में प्रयोग में लाई जाती हैं। प्रो. परेज ने बताया कि कैंसर के क्षेत्र में पहली बार इस तरह की कोई दवा बनाई गई है और यह अन्य दवाओं के मुकाबले ज्यादा प्रभावी भी है।
परेज ने बताया कि स्तन कैंसर रोगियों में ट्यूमर को समाप्त करने में उनकी यह नई दवा बहुत कारगर है। इसके लिए उन्होंने इसकी चिकित्सीय जांच भी की है। इसके लिए उन्होंने 137 स्तन कैंसर पीड़ित मरीजों को शामिल किया। मरीजों को दो वर्गों में बांटने के बाद उन्होंने लगातार छह महीनों तक मरीजों को टी-डीएम1 और ट्रांसतुजुमाब दवा खिलाई। इसके बाद उन्होंने पाया कि केवल ट्रांसतुजुमाब दवा खाने वाले 41 फीसदी मरीजों को फायदा हुआ, जबकि टी-डीएम1 खाने वाले 48 फीसदी मरीजों को तत्काल फायदा हो रहा था।
परेज ने बताया कि यह दवा उन मरीजों के लिए भी काफी फायदेमंद है, जिन्हें अन्य ट्रीटमेंट से फायदा नहीं मिल रहा हो। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कैंसर मरीजों के लिए स्टेज-3 काफी खतरनाक होता है, लेकिन इसके खात्मे के लिए भी उनकी टीम एक शोध में जुटी है और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा।
खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए हम प्याज का इस्तेमाल करते हैं। क्या आपको पता है कि यह सिर्फ खाने को ही स्वादिष्ट नहीं बनाता, बल्कि यह आपके सेहत को भी ठीक रखने में मदद करता है। लाल प्याज हृदय संबंधी बीमारियों से बचाव में हमारी मदद करता है। हांग कांग में चीन की एक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक शोध के बाद इस बात का खुलासा किया।
प्रमुख शोधकर्ता जेन यू चेन ने बताया कि लाल प्याज हमारे शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को खत्म करता है, जिससे हमे हृदय संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं। कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा से हृदयाघात का खतरा लगातार बना रहता है। चेन ने बताया कि लाल प्याज हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बनाए रखता है। चेन ने बताया कि जीव विज्ञान में इस तरह का यह पहला शोध है।
इस शोध को पूरा करने के लिए शोधकर्ताओं ने उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों को लाल प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर लगातार आठ सप्ताह तक खिलाया। आठ सप्ताह के बाद उन्होंने पाया कि ऐसे लोगों में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल में 20 फीसदी तक कमी आई। चेन ने बताया कि इस शोध के आधार पर ही यह कहा जा सकता है कि लाल प्याज हृदय संबंधी रोगों से बचाने के लिए काफी मददगार है।
लाल प्याज का इस्तेमाल सर्वाधिक भारत, मध्य पूर्वी देश और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में होता है। इतना ही नहीं, पहले किए गए शोधों में यह बताया जा चुका है कि प्याज कफ और सर्दी से भी रक्षा करता है। चेन ने बताया कि पहले के अध्ययनों में यह बताया जा चुका है कि जिन क्षेत्रों में प्याज का इस्तेमाल अधिक होता है, वहां कैंसर रोग से ग्रसित होने वाले मरीजों की संख्या बहुत कम है। चीन में प्याज के अधिक इस्तेमाल के कारण ही पूरी दुनिया के मुकाबले पेट के कैंसर का खतरा 40 फीसदी कम है।
प्रमुख शोधकर्ता जेन यू चेन ने बताया कि लाल प्याज हमारे शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को खत्म करता है, जिससे हमे हृदय संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं। कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा से हृदयाघात का खतरा लगातार बना रहता है। चेन ने बताया कि लाल प्याज हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बनाए रखता है। चेन ने बताया कि जीव विज्ञान में इस तरह का यह पहला शोध है।
इस शोध को पूरा करने के लिए शोधकर्ताओं ने उच्च कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों को लाल प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर लगातार आठ सप्ताह तक खिलाया। आठ सप्ताह के बाद उन्होंने पाया कि ऐसे लोगों में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल में 20 फीसदी तक कमी आई। चेन ने बताया कि इस शोध के आधार पर ही यह कहा जा सकता है कि लाल प्याज हृदय संबंधी रोगों से बचाने के लिए काफी मददगार है।
लाल प्याज का इस्तेमाल सर्वाधिक भारत, मध्य पूर्वी देश और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में होता है। इतना ही नहीं, पहले किए गए शोधों में यह बताया जा चुका है कि प्याज कफ और सर्दी से भी रक्षा करता है। चेन ने बताया कि पहले के अध्ययनों में यह बताया जा चुका है कि जिन क्षेत्रों में प्याज का इस्तेमाल अधिक होता है, वहां कैंसर रोग से ग्रसित होने वाले मरीजों की संख्या बहुत कम है। चीन में प्याज के अधिक इस्तेमाल के कारण ही पूरी दुनिया के मुकाबले पेट के कैंसर का खतरा 40 फीसदी कम है।