अमरीका के शोधार्थियों का कहना है कि अक्सर दो वर्ष की उम्र में तय हो जाता है कि कोई व्यक्ति मोटापे का शिकार होगा या नहीं. शोध के लिए सामान्य से अधिक वजन वाले सौ से अधिक बच्चों व किशोरों के अध्ययन से पता चला कि आधे से अधिक बच्चे 24 महीने की उम्र से मोटे थे जब कि 90 फ़ीसदी बच्चों का वज़न 5 साल की उम्र से ही सामान्य से अधिक था.
'क्लिनिकल पेडियाट्रिक्स' की इस रिपोर्ट में बताया गया कि एक चौथाई बच्चों का वजन पांच महीने की उम्र से ही सामान्य से अधिक था. वर्तमान में ब्रिटेन में 27 फ़ीसदी बच्चों का वज़न सामान्य से अधिक है. अध्ययन में शामिल किए गए वे सभी बच्चे जिनकी औसत उम्र 12 साल थी, उन सभी का वज़न 10 साल की उम्र से ही सामान्य से अधिक हो गया था. हालांकि कम उम्र में ही मोटापे का शिकार होने की वजह पूरी तरह से समझ में नहीं आ सकी है, लेकिन असंतुलित आहार, बच्चों को जल्दी ही ठोस आहार देना शुरु करना और पर्याप्त मात्रा में व्यायाम का अभाव इसकी खास वजहें हो सकती हैं.
खान-पान की आदतें
शोधकर्ताओं ने कहा कि दो साल की उम्र से ही बच्चों में खान-पान की आदतें तय की जा सकतीं हैं क्योंकि आगे चलकर बच्चे में खान-पान की आदतों में बदलाव कठिन हो सकता है.
अक्सर डाक्टर इलाज शुरू करने का इंतज़ार तब तक करते हैं जब तक कि इस मामले में कुछ जटिलताएं न शुरू हो जाएं
डॉ जॉन हैरिंगटन
अध्ययन में शामिल शोधार्थी और ईस्टर्न वर्जीनिया मेडिकल के डा. जॉन हैरिंगटन ने कहा कि इन नतीजों के आने के बाद 'डाक्टरों को सचेत हो जाना चाहिए'. उन्होंने कहा, ‘‘अक्सर डाक्टर इलाज शुरू करने का इंतज़ार तब तक करते हैं जब तक कि इस मामले में कुछ जटिलताएं न शुरू हो जाएं." उनका कहना था "पुरानी आदतों में बदलाव ला पाना बच्चों व माता-पिता दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है. इसमें बहुत अड़चनें होती हैं और अक्सर निराशा भी.’’
डॉ. हैरिंगटन ने कहा, ‘‘इस अध्ययन से पता चलता है कि मोटापे के वर्तमान ट्रेंड में खास बदलाव लाने के लिए बच्चों की शुरुआती उम्र से ही सामान्य से अधिक वजन हासिल करने के मसले पर गंभीरता से बहस करनी चाहिए.’’
स्वास्थ्य विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘‘आगे चलकर बच्चे का स्वास्थ्य कैसा होता है, वह काफ़ी कुछ इस पर निर्भर करता है कि शुरुआत के वर्षों में उनका जीवन कैसा रहता है.’’
उनका कहना है, ‘‘हाल के आंकड़े जहां इस मामले में उत्साहजनक हैं कि बच्चों के मोटापे में कमी आ रही है, वहीं दूसरी तरफ़ सामान्य से अधिक वजन का स्तर अभी भी काफ़ी अधिक है. अहम बात यह है कि हम इस उत्साह को कैसे बनाए रखते हैं.’’
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लंदन ।। सुबह उठते ही गरमागरम कॉफी की चुस्की लेने वालों को भले ही यह खबर अच्छी न लगे पर एक लेटेस्ट स्टडी में दावा किया गया है कि कैफीन वाली गर्म कॉफी का एक प्याला भी आपके दिल को नुकसान पहुंचा सकता है। इटली के रिसर्चरों ने पाया कि एक प्याले में भी बड़ी मात्रा में कैफीन होता है जो सेहत पर गलत असर डालता है। यह दिल में खून के बहाव में रुकावट पैदा करने के चांस पांच गुना तक बढ़ा देता है।

बहरहाल, स्टडी में यह भी पाया गया कि कैफीनरहित कॉफी फायदेमंद होती है क्योंकि इसमें दिल की सेहत के लिए जरूरी एंटी ऑक्सिडेंट होते हैं और यह ब्लड फ्लो को बढ़ाती है। सामान्य इंस्टैंट कॉफी में 75 मिलीग्राम कैफीन के मुकाबले गर्मागर्म एस्प्रेस्सो कॉफी के एक प्याले में 130 मिलीग्राम कैफीन होता है। फिल्टर कॉफी के एक प्याले में यह मात्रा 120 मिलीग्राम तक होती है।
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लंदन। आजकल के यंगस्टर कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं और आम धारणा है कि यंगस्टरों में सिरदर्द की एक वजह यह भी है लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि संगीत की वजह से यंगस्टरों में सिरदर्द हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने सिरदर्द और संगीत सुनने की अवधि के बीच एक संबंध देखा है। शोधकर्ताओं ने 1,025 यंगस्टरों पर अध्ययन किया। इस अध्ययन में कम्प्यूटर गेम्स खेलने, मोबाइल फोन के इस्तेमाल या टेलीविजन देखने और सिरदर्द या माइग्रेन के बीच कोई संबंध नहीं देखा गया।
यद्यपि प्रतिदिन एक या दो घंटे तक संगीत सुनने और सिरदर्द के बीच संबंध देखा गया। जर्मनी में म्यूनिख की लडविग-मैक्सीमिलिएंस-युनीवर्सिटी की अध्ययनकर्ता मिल्डी-बुश ने शोधकर्ताओं के एक दल के साथ यह अध्ययन किया। अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपर्क में रखकर उनमें अलग-अलग तरह से सिरदर्द को जांचा गया।
बुश ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल का स्वास्थ्य पर गहरा और विपरीत प्रभाव देखा गया। इससे मोटापा या नियमित रूप से व्यायाम न करने जैसी समस्या आई और थकान, तनाव, एकाग्रता में परेशानी, निद्रा में कमी जैसे लक्षण देखे गए।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में 489 ऐसे किशोरों को शामिल किया जिनमें सिरदर्द की समस्या थी और 536 ऐसे किशोर थे जिनमें यह परेशानी नहीं थी।
जब किशोरों के दोनों समूहों की तुलना की गई तो उनमें टेलीविजन देखने, इलेक्ट्रॉनिक गेम खेलने, मोबाइल फोन या कम्प्यूटर के इस्तेमाल से जुड़ी कोई परेशानी नहीं देखी गई।
यद्यपि प्रतिदिन सुने जाने वाले संगीत और सिरदर्द के बीच संबंध देखा गया। बुश के मुताबिक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि सिरदर्द का कारण संगीत सुनने की आदत थी या यह दर्द स्वयं चिकित्सा द्वारा आराम प्राप्त करने की कोशिश का परिणाम था।
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सुन्दर काले व चमकदार बाल नारी की सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। पुराने समय में बालों के रखरखाव व निखार के लिए नारियाँ अनेक नुस्खे इस्तेमाल में लाती थीं, जिनसे बाल वास्तव में ही काले, घने, मजबूत और चमकदार बनते थे। लेकिन आजकल कई तरह के साबुन और अन्य चीजों को बालों की सार-संभाल के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है। इनसे बाल पोषक तत्व हासिल करने के स्थान पर समय से पूर्व टूट कर गिरने लगते हैं, साथ ही सफेद होने लगते हैं। पेश है बालों के रख-रखाव के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ, जिन्हें इस्तेमाल कर बालों को मजबूत, काले और चमकदार बनाया जा सकता है।

खट्टी दही में चुटकी भर ‍िफटकरी मिला लें, साथ ही थोड़ी सी हल्दी भी मिला लें। इस मिश्रण को सिर के बालों में लगाने से सिर की गंदगी तो दूर होती ही, साथ ही सिर में फैला संक्रमण भी दूर होता है। इस क्रिया को करने से सिर के बाल निखर उठते हैं।

बालों को धोने के बाद गोलाकार कंघी से बालों में भली प्रकार से ब्रश करना चाहिए। इसके बाद सिर के बालों की जड़ों में उँगली घुमाते हुए अपना हाथ ऊपर से नीचे की ओर ‍फिराएँ। ऐसा करने से आपके बाल हमेशा मुलायम बने रहेंगे।

हफ्ते में कम से कम एक बार अपने सिर के बालों में जैतून के तेल की मालिश अवश्य करें। ऐसा करने से सिर के बाल सफेद होने बंद होते हैं और मजबूती पाते हैं।

धूल और प्रदूषण के प्रभाव से सिर के बाल रूखे और बेजान से हो जाते हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए हमेशा अच्छे शैम्पू से बालों को धोना चाहिए। और अच्छा हेयर टॉनिक लगाना चाहिए।


Tips for Youth
कुदरती साधनों के इस्तेमाल से बालों को सुंदर बनाया जा सकता है। बालों को अच्छी तरह धोने के बाद बालों में ताजी मेहँदी पीसकर लगानी चाहिए। कुछ वक्त बाद बालों को पानी से धो लेना चाहिए।

हफ्ते में एक बार बालों में तेल की मालिश जरूर करनी चाहिए। ऐसा करने से बालों की बेहतर कसरत हो जाती है। और सिर में खून का दौरा भी सुचारु रूप से होता है।

भूलकर भी अपने सिर के बालों के साथ ज्यादा एक्सपेरिमेंट न करें। ऐसा करने से बाल कमजोर होकर असमय टूटने लगते हैं।

Tips for Youth
बालों की साफ-सफाई में लापरवाही न बरतें। याद रखें कि पसीना बालों की जड़ों में पहुँचने पर बालों को नुकसान पहुँचाता है। इससे बचने के लिए हफ्ते में कम से कम दो बार बालों की सफाई जरूर करें।

बालों में अक्सर रूसी की समस्या उत्पन्न हो जाया करती है जिससे बाल बेजान होकर टूटने लगते हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले बालों में अच्छी तरह तेल लगा लें, फिर गर्म पानी में भीगे तौलिए से बालों को भाप दें। ऐसा करने से बालों की रूसी खत्म हो जाएगी।
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विटामिन्स की छोटी खुराक लें, क्योंकि उनका काम शरीर की रासायनिक प्रक्रियाओं को रेग्युलेट करने में मदद करने का होता है। विटामिन सप्लीमेंट्स फूड का विकल्प नहीं हैं। इनसे खानपान की खराब आदतें पड़ती हैं। इनसे ऊर्जा नहीं मिलती क्योंकि इनमें कैलोरी नहीं होती। अगर आप कमजोरी महसूस कर रहे हैं तो अपनी डायट बढ़ा दें।विटामिन से किसी रोग का इलाज नहीं होता, सिवाय उस स्थिति के, जो विटामिन की कमी से जुड़ी हों।
अन्य दवाओं की तरह विटामिन भी एक्सपायर हो जाते हैं। इसलिए खाने से पहले एक्सपायरी डेट को अवश्य देख लें। अगर आप मल्टी विटामिन्स ले रहे हों तो उन्हें अधिकतम हजम करने के लिए यह सुनिश्चि कर लें कि आप पेट भरकर खाना खा रहे हैं। विटामिन्स की एक गोली सुबह लेना काफी नहीं होता है क्योंकि बहुत से विटामिन्स दिन के अलग-अलग समय में अधिक फायदेमंद होते हैं और हजम भी होते हैं।
अगर आप गर्भनिरोधक गोलियाँ ले रही हैं तो विटामिन्स लेना आवश्यक नहीं है। नाखूनों के फटने का अर्थ यह नहीं है कि आपमें विटामिन की कमी है। फंगल इंफेक्शन या कोई और कारण नाखूनों के फटने की वजह हो सकती है।
सिरदर्द की गोलियों की तरह विटामिन्स तुंत अपना कमाल नहीं दिखाते, किसी भी समस्या का समाधान करने में उन्हें समय लगता है। सिर्फ एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) से स्वीकृत विटामिन सी लें। स्थानीय कंपनियों के विटामिन्स न लें।
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लंदन.  सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि सेक्स के लिए ज्यादातर लोग अपना महत्वपूर्ण काम छोड़ देता है। अमेरिका में कंज्यूमर रिपोर्ट द्वारा किए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि ज्यादातर लोग चाहकर भी सेक्स नहीं कर पाते। 1000 लोगों पर किए गए सर्वे में यह बात निकलकर आई है कि शारीरिक संबंध बनाने के समय लोग इतना थक जाते हैं कि वे आराम को पहली प्राथमिकता देते हैं। 80 फीसदी लोग किसी ना किसी कारणवश शारीरिक संबंध (सेक्स) बनाने से इनकार दिया।

सर्वे में यह बात भी सामने आई कि पुरूषों से ज्यादा महिलाएं सेक्स के लिए टालमटोल करती हैं। क्योंकि महिलाओं से अधिक पुरूष सेक्स के बारे में सोच विचार करते हैं। सर्वे के रिपोर्ट में 60 फीसदी पुरुष दिन में कम से कम एक बार सेक्स के बारे में सोचते हैं जबकि महिलाओं में 19 फीसदी ही सेक्स के बारे में विचार करती हैं। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठता है कि क्या सेक्स से ज्यादा कोई और जरूरी काम है।

कंज्यूमर रिपोर्ट के सर्वे के मुताबिक 53 फीसदी लोग नींद आने या थक जाने पर सेक्स करने से मना कर देते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि किसी एक पार्टनर को सेक्स करने की इच्छा न हो तो वे निश्चिंत होकर दूसरे पार्टनर से सेक्स करने की इच्छा से इनकार कर देता है। सेक्स के लिए तबियत खराब का बहाना लेकर अधिकतर मनुष्य सेक्स करने से मना करते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार सर्वे में ज्यादातर पुरुषों ने माना कि वे चाहकर भी रात में सेक्स नहीं कर पाते क्योंकि वे ऑफिस और भागदौड़ से बहुत ज्यादा थक जाते हैं। पुरुषों का कहना है कि चाहकर भी उन्हें पार्टनर को दुखी करना पड़ता है।
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वाशिंगटन.यह आम धारणा रही है कि महिलाएं अपनी पहली डेट पर खाने के नाम पर सिर्फ सलाद ऑर्डर करती हैं, या फिर कम से कम कैलोरी वाला भोजन लेती हैं। एक हालिया अध्ययन में इस धारणा पर वैज्ञानिकों ने भी अपनी मुहर लगा दी है।
मनोवैज्ञानिक मेरडिथ यांग तथा ओंटारियो स्थित मैकमास्टर यूनिवर्सिटी की उनके सहभागियों ने कैंपस कैंटीनों में लगभग 500 अंडरग्रैजुएट्स के खाने के प्रति रुझान और व्यवहार पर नजर रखी। उन्होंने पाया कि जब कोई महिला किसी पुरुष के साथ बैठकर खाना खाती है तो वह अक्सर सलाद या फिर ऐसा ही कुछ हल्का फुल्का व्यंजन चखती है।

हालांकि महिलाओं के साथ खाना खाते हुए अन्य महिलाएं ऐसा व्यवहार नहीं करती। दरअसल अपने ब्वॉयफ्रैंड या किसी दोस्त के साथ बैठे हुए जब महिला ऐसा खाना ऑर्डर करती है तो उसका आशय खुद को दुबला पतला व स्वस्थ दर्शाना होता है।

मेरडिथ ने कहा कि सलाद खाने का अर्थ यह बताना होता है कि ,‘मैं सुंदर हूं और अपना ख्याल रखना जानती हूं ।’ जबकि पुरुषों को अपना खाना कम करके महिलाओं को प्रभावित करने की जरूरत महसूस नहीं होती। रिपोर्ट बताती है कि पुरुष अपनी पहली, दूसरी या तीसरी हर डेट पर उतना ही खाते हैं जितना कि वे हमेशा खाते हैं। महिलाओं पर हमेशा से आकर्षक दिखने का सामाजिक दबाव रहा है, जिस कारण महिलाएं खुद को आकर्षक बताने के लिए ऐसा करती हैं।
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लंदन. अगर आपका दिल उदास है तो थोड़ा सचेत होकर यह खबर पढ़ें क्योंकि आपकी उदासी जानलेवा भी हो सकती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन ने अध्ययन में पाया कि जो लोग उदासी की शिकायत करते हैं, उनके जवानी में गुजर जाने की आशंका बढ जाती है। जो लोग विरक्ति के शिकार हैं, उनके दिल के रोगों से मरने की आशंका संतुष्ट लोगों के मुकाबले ढाई गुना तक बढ़ जाती है।


शोधकर्ताओं के मुताबिक एक कारण यह भी हो सकता है कि जो लोग जीवन से खुश नही हैं, वे शायद अस्वास्थ्यकारी आदतों के शिकार बन जाएं। जैसे सिगरेट या शराब की लत लग जाए और इस कारण उनका जीवन छोटा हो जाए।

25 साल से ज्यादा समय का शोध


अध्ययन में पाया गया कि उदासी का दिल के रोगों से संबंध है। यह महत्वपूर्ण है कि जो लोग अपने जॉब से उदास हैं, वे उदासी भगाने के लिए शराब और धूम्रपान के बजाय रुचि का शौक ढूंढ लेते हैं। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए 7000 सिविल सवेर्ंट्स पर 25 साल से ज्यादा समय तक शोध किया और पाया कि जिन अधिकारियों को नौकरी से ऊब थी, उनमें सामान्य अधिकारियों की तुलना में मरने की आशंका 40 फीसद तक बढ़ गई थी।
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आप रात में औसतन आठ घंटे की नींद लेते हैं, लेकिन फिर भी सुबह उठने पर थकन महसूस करते हैं जैसे किसी ने सारी ऊर्जा खींच ली हो। आपको लगता है कि अनियमित समय पर कामकाज करने से ऐसा हो रहा है। इसलिए आप ने जॉब बदल लिया और नियमित समय पर काम करने लगे। लेकिन फिर भी आपकी समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। आपने अपने डॉक्टर से संपर्क किया। उसने बताया कि आप क्रोनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) से पीड़ित हैं। इस स्थिति में अजीब किस्म की थकन होती है, एकाग्रता कम हो जाती है और बेचैनी बढ़ जाती है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि आप सीएफएस से छुटकारा पा सकते हैं।
अगर आप आलस भरा जीवन व्यतीत करते हैं तो सीएफएस का खतरा आपको अधिक होगा, क्योंकि आप जिस्मानी तौर पर निक्रिय रहते हैं। आपको वजन बढ़ने का खतरा अधिक होता है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, शुगर के स्तर में वृद्धि होती है और स्टैमिना कम हो जाता है।
अगर आप पूरे दिन थकन महसूस करते हैं, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें। इसका बुनियादी अर्थ है कि कोई चीज़ पटरी पर नहीं है- वह जिस्मानी भी हो सकती है और मानसिक भी। इसके कई कारण हो सकते हैं इसलिए अपना थायराइड प्रोफाइल, शुगर और कोलेस्ट्राल स्तर चैक करा लें। यह हल्के बुखार की वजह से भी हो सकता है जो इंफेक्शन का नतीजा होता है। बहरहाल, अगर यह सब टेस्ट नेगेटिव हैं, तो इसके सीधे अर्थ हैं कि आप तनावग्रस्त हैं जोकि सीएफएस का लक्षण है।
अगर आपको सीएफएस है तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। आप इससे लड़ सकते हैं, बस यह सुनिश्चित कर लें कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच आपको कम से कम छह घंटे की नींद लेनी है। दिन में दोपहर की नींद एक घंटे से ज्यादा की नहीं होनी चाहिए और 15-30 मिनट की पावर नैप न सिर्फ स्वस्थ है बल्कि आपकी कार्यक्षमता को भी बढ़ा देती है।
रात में अच्छी व भरपूर नींद लेना, थकन को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है। थकन को दूर करने के लिए कई त्वरित नुस्खे हैं-
  • थोड़ी देर धूप में बैठें।
  • सक्रिय रहें, आलसपन छोड़ें।
  • जितना काम कर सकते हैं सिर्फ उतना ही काम लें।
  • जिन लोगों को प्यार करते हैं उनके साथ वक्त गुजारें।
बहुत ज्यादा शुगर या रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे चावल, मैदा आदि खाना, लम्बे अंतराल पर खाना खाना और सही किस्म के फैट्स न खाने से भी आदमी थकन महसूस करता है। दिन भर के सतत ऊर्जा प्रवाह के लिए बहुत सारी हरी सब्जियाँ खायें। खाने में फल, नट्स, सीड्स, अंडा और फिश भी शामिल करें। ज्यादा कॉफी और चाय न पीयें, भले ही आपको उनसे राहत मिलती है। यह सिर्फ अस्थायी राहत होती है। इसके अलावा -
  • अपने जीवन के उन क्षेत्रों को पहचानें जिनसे तनाव होता है।
  • मन को अच्छा लगने वाला संगीत सुनें, इससे तनाव दूर होता है।
  • छोटी-सी चीज पर अधिक पसीना बहाने की जरूरत नहीं है।
  • नियमित कसरत करें। वॉकिंग, तैराकी, साइकिलिंग या कोई अन्य स्पोर्ट्स चुनें- जैसे बैडमिंटन।
  • स्पा जाएँ, अच्छा मसाज हासिल करें। इससे न सिर्फ तनाव दूर होगा बल्कि नींद भी अच्छी आयेगी।
  • हँसी वास्तव में सबसे अच्छी दवा है। लाप्टर क्लब के सदस्य बनें। पुराने दोस्तों से मुलाकात करें, हास्य फिल्में देखें...कोई भी चीज़- जिससे आप खुलकर हँस सकें।
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मोटे, या फिर कहें अत्यधिक मोटापे के शिकार पुरुषों एवं महिलाओं को समाज में शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक परेशानियों से तो गुजरना पड़ता ही है, साथ ही इससे उनका सेक्स जीवन भी प्रभावित होता है। वैवाहिक जीवन की सफ़लता और यौनतुष्टि के बीच गहरा रिश्ता है। हाल ही में किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार- भारत में तलाक के मामलों में से 50 प्रतिशत के पीछे यौनतुष्टि का अभाव मुख्य कारण रहता है। यौन संबंध विफल हो जाने या पूर्णरूपेण संतुष्टि ना होने के पीछे कार्यरत मुख्य कारणों में किसी एक साथी का मोटापा भी एक कारण हो सकता है।
यौन क्रिया एवं आनंद में मोटापा तीन स्तरों पर बाधक रहता है- शारीरिक, भावनात्मक तथा मानसिक। शारीरिक तौर पर देखा जाये तो मोटे या थुलथुल शरीर के प्रति मन में आकर्षण उत्पन्न नहीं होता, जिससे कामवासना या कामेच्छा भी जागृत नहीं होती। आलसी, बेडौल और हद से ज्यादा मोटे व्यक्ति को अच्छे और हंसमुख व्यवहार के बावजूद लोग पसंद नहीं करते। इस पर मोटे व्यक्ति तन्हा रह जाते हैं और उनमें अपने अनाकर्षक और बेडौल शरीर को लेकर शर्मिंदगी और हीन भावना घर कर जाती है। इसी अहसास के चलते और अपने अनाकर्षक शरीर के कारण, वे अपने साथी की कामेच्छा जगाने में सफल नहीं हो पाते तथा ऐसी भावनाओं के कारण वे स्वयं भी कामोत्तेजित नहीं हो पाते। ऐसे में उनके साथी के लिए सेक्स लाइफ एक भयानक अनुभव और परेशानी का सबब बन कर रह जाती है।
इसके अतिरिक्त मोटापा यौन क्रिया के दौरान विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं- कमर दर्द, जोड़ों का दर्द तथा कमज़ोरी इत्यादि- के रूप में भी बाधक बनता है। मोटे व्यक्ति की गतिविधियाँ और क्रियाकलाप भी धीमे रहते हैं तथा वह यौनक्रिया के दौरान शीघ्र थकान महसूस करने लगता है। अगर पुरुष और महिला दोनों ही मोटापे का शिकार हों तो वे सेक्स का पूर्ण आनंद उठाने से वंचित रहते हैं। विशेष तौर पर अत्यधिक मोटे पुरुष टेस्टोस्टेरोन की कमी के चलते सहवास के दौरान विफल रह जाते हैं। इतना ही नहीं, हद से ज्यादा मोटे पुरुषों में नारीयोचित प्रणाली सक्रिय हो जाती है। उनमें वसायुक्त उत्तकों के हार्मोंस महिलाओं में पाये जाने वाले हार्मोन एस्ट्रोजेन में परिवर्तित हो जाते हैं। ऐसे पुरुषों में कामेच्छा में कमी रहना लाजमी है।
मोटे पुरुषों की परेशानी मोटी महिलाओं की परेशानी से नितांत भिन्न होती है। थुलथुल महिलाएँ अपने शरीर की बेडौलता से उत्पन्न शर्मिंदगी और हीन भावना के चलते बेशक यौन क्रिया के समय पूरा आनंद नहीं उठा पातीं या फिर इसी अहसास के चलते उनमें कामोत्तेजना भी मुश्किल से होती है, फिर भी वे यौन क्रिया में सहयोग करती हैं, जबकि मोटे पुरुषों में चाहे शरीर की बेडौलता को लेकर शर्मिंदगी नहीं होती किंतु मोटापा उनकी कामोत्तेजना के आड़े आता है और स्खलन भी शीघ्र होता है- कहना है एक सेक्स क्लिनिक के डायरेक्टर तथा साइकेट्रिक यूनिट के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. यिझाक बेन जिऑन का।
इसके अतिरिक्त मोटे लोगों में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, खून में ट्रिग्लीसेराड्स की मात्रा अधिक होना, अच्छे कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम तथा खराब कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होना, सांस फूलना तथा मादा हार्मोंस की अधिकता के चलते रक्त-शिराएँ अवरुद्ध हो जाना इत्यादि कामोत्तेजना और यौन आनंद के दुश्मन साबित होते हैं। इसका प्रभाव उनके परस्पर रिश्ते पर पड़ना स्वाभाविक ही है। वेट कंट्रोल विशेषज्ञ प्रोफेसर एलेक्जेंडर पोलास्की कहते हैं कि कामोत्तेजना और कामेच्छा में कमी के चलते मोटे व्यक्तियों को भावनात्मक स्तर पर यह अहसास भी सताता रहता है कि उनका साथी पूर्ण यौन आनंद नहीं उठा पा रहा है, जिससे उनमें शर्मिंदगी घर कर जाती है।
मोटे पुरुष और महिलाओं में कामेच्छा या कामवासना इसलिए भी कम होती है क्यूँकि उन्हें मनपसंद भोजन करने पर ही संतुष्टि हो जाती है। इस संतुष्टि और गरिष्ठ भोजन की अधिकता से उत्पन्न आलस्य और सुस्ती का प्रभाव भी कामोत्तेजना पर पड़ता है।
मोटापा ऐसा श्राप है जिसका असर व्यक्ति के जीवन के सभी पहलुओं पर पड़ता है। मोटापे से उत्पन्न तरह-तरह की व्याधियाँ उसे शारीरिक स्तर पर बीमार बनाती हैं तो बैडोल शरीर का भद्दापन सामाजिक शर्मिंदगी का कारण बनता है। इन सबसे बढ़ कर है- व्यक्ति की सेक्स लाइफ पर पड़ने वाला प्रभाव, जो उसके जीवन को नीरस एवं बेरंग बना देता है और वह नितांत अकेला पड़ जाता है। अत मोटापे से निजात पाने के लिए सभी तरह के प्रयास करने चाहिए। चिकित्सक से सलाह लें, व्यायाम करें, योगा करें, संतुलित और समय पर भोजन करें इत्यादि।
इस सबके बावजूद मोटे व्यक्तियों को पूरी तरह से नकारना भी ठीक नहीं है। देखा जाये तो मोटे व्यक्ति बेहद अच्छे प्रेमी सिद्ध होते हैं, क्यूंकि वे अपनी इस शारीरिक अक्षमता की पूर्ति अन्य तरीकों से साथी को खुश करके करते हैं और उसकी खुशी और संतुष्टि का पूर्णरूपेण ध्यान रखते हैं। इसके अतिरिक्त मोटे व्यक्ति को यदि स्वयं अपनी शारीरिक बेडौलता से कोई परेशानी नहीं है और वह स्वयं को चुस्त-दुरुस्त और फिट समझता है तो यौनक्रिया के दौरान भी उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती। अगर स्थिति इसके विपरीत भी है, तो ज़रूरत है अपने साथी और उसकी आवश्यकताओं को समझकर उसका साथ देने की, जिससे वह जीवन के इस अभिशाप से मुक्त हो सके।
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एक शोध से संकेत मिले हैं कि इस बात में कोई दम नहीं है कि मधुमेह से पीड़ित लोगों के नियमित रूप से ऐस्प्रिन का सेवन करने से दिल के दौरे का ख़तरा कम हो जाता है. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक 1300 ऐसे वयस्कों ने ऐस्प्रिन का नियमित रूप से सेवन किया जिनमें हृदय रोग के कोई लक्षण नहीं थे. उन्हें इससे कोई फ़ायदा नहीं हुआ. यह अनुसंधान उन विभिन्न दिशा-निर्देशों के विपरीत हैं जिनमें दिल के दौरों से बचने के लिए ऐस्प्रिन के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है स्वास्थ्य संबंधित ख़तरे झेल रहे कई अन्य ऐसे मरीज़ हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत हो सकती है.

'कोई लाभ नहीं'

शुरूआती स्तर पर बचाव के लिए इसके इस्तेमाल पर हमें दोबारा विचार करने की ज़रूरत है नवीनतम अध्ययन के मुताबिक जिन लोगों को दिल का दौर पड़ चुका हो या फिर जो हृदय रोग से ग्रस्त हों, उनमें ऐस्प्रिन के इस्तेमाल से भविष्य में होने वाले ख़तरों में लगभग 25 प्रतिशत कटौती होती है.

लेकिन 40 साल से ज़्यादा उम्र वाले मधुमेह से पीड़ित लोगों पर हुए ताज़ा शोध में सात साल की अवधि में ऐस्प्रिन के सेवन करने वाले और उसका सेवन न करने वाले लोगों में दिल के दौरे के संबंध में कोई फ़र्क नहीं पड़ा.

अध्ययन दल की प्रमुख प्रोफ़ेसर जिल बेल्च का कहना है कि पेट में रक्त स्त्राव की शिकायत के साथ अस्पताल पहुँचने वाले अधिकतर लोग ऐस्प्रिन सेवन के शिकार होते हैं. मरीज़ों को फ़िलहाल परेशान होने की या एस्प्रिन लेना बंद करने की ज़रूरत नहीं है उन्होंने कहा, ''शुरूआती स्तर पर बचाव के लिए इसके इस्तेमाल पर हमें दोबारा विचार करने की ज़रूरत है. ''

इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक विशेषज्ञ पीटर सेवर का मानना है कि यह अध्ययन 'बेहद महत्वपूर्ण' है. उन्होंने कहा, हज़ारों लोग दुकानों से ऐस्प्रिन ख़रीदते हैं. मैं मरीज़ों से हमेशा कहता हूँ कि ऐसा न करें. इस सब के बावजूद रॉयल कॉलेज के प्रोफ़ेसर स्टीव फील्ड का कहना है यह अध्ययन मौजूदा-दिशा निर्देशों को बदलने के लिए महत्वपूर्ण है.
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स्कॉटलैंड के रिसर्चरों ने एक नई इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल डिवेलप करने का दावा किया है। इसकी खूबी है कि यह सेक्स के पांच दिन बाद भी प्रेग्नेंसी के जोखिम को रोकने में कामयाब है।

इसके लिए शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन, आयरलैंड और अमेरिका की 16 हजार महिलाओं पर स्टडी की। इस दौरान उन्होंने पाया कि नई गोली यूलीप्रिस्टल एसीटेट आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली इमर्जेंसी पिल लेवोनोरजेस्ट्रल से काफी बेहतर है। गौरतलब है कि लेवोनोरजेस्ट्रल सिर्फ तीन दिन की लिमिट देती है।

रिसर्च के दौरान देखा गया कि लेवोनोरजेस्ट्रल लेने वाली महिलाओं में 2.6 फीसदी गोली लेने के बाद भी पेग्नेंट हो गईं। दूसरी तरफ नई गोली यूलीप्रिस्टल लेने वाली महज 1.8 फीसदी महिलाएं अनचाही प्रेग्नेंसी का शिकार हुईं।

दूसरे स्टडी ग्रुप में उन महिलाओं को शामिल किया गया जिन्हें सेक्स के बाद तीन दिन बीत चुके थे। इनमें से यूलीप्रिस्टल लेने वाली महिलाएं प्रेग्नेंसी से बची रहीं, जबकि लेवोनोरजेस्ट्रल लेने वाली तीन महिलाएं प्रेग्नेंट हो गईं। खास बात यह है कि दोनों ही दवाओं के साइड इफेक्ट लगभग एक जैसे ही हैं। हालांकि, अभी यह नई दवा दवा की दुकानों पर मौजूद नहीं होगी क्योंकि अभी तक इसका सेफ्टी रेकॉर्ड लेवोनोरजेस्ट्रल जितना नहीं है।
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