न्यूयॉर्क में वैज्ञानिकों का कहना है कि पुरुषों में यौन उत्तेजना के लिए उपयोग में आने वाली दवा का इस्तेमाल टैबलेट के बजाय क्रीम के रूप में करना ज़्यादा सुरक्षित है. चूहों पर किए गए अध्ययन के मुताबिक वियाग्रा, लेविट्रा और साएलिस जैसी दवाइयां छोटे- छोटे कैपसूलों के ज़रिए सीधे त्वचा में लगाई जा सकती हैं. ‘सेक्सुअल मेडिसिन’ नामक पत्रिका में छपे इस शोध में कहा गया है कि इससे दवा का असर और ज़्यादा होगा जबकि इससे होने वाले ‘साइड इफेक्ट्स’ में भी कमी आ सकती है. लेकिन क्रीम के रूप में इन दवाओं के आने में अभी एक दशक का समय लग सकता है. उत्तेजनात्मक कमज़ोरी के इलाज के लिए टेबलेट के रूप में दवाइयों की खोज दवा उद्योग की बड़ी सफलताओं में से एक मानी जाती है. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इन दवाओं का इस्तेमाल दुनिया भर में करोड़ों लोग करते हैं.
टैबलेट का असर होने में आधा से एक घंटा तक का समय लगता है, जबकि क्रीम का असर कुछेक मिनटों में ही हो जाता है. 
हालांकि इन दवाओं से बहुत से लोगों को फ़ायदा पहुंचा है लेकिन सिर दर्द, आंखों की बीमारी और पेट की ख़राबी जैसे कई साइड इफेक्ट्स भी इन दवाइयों से होते हैं. इसके अलावा हृदय रोगियों को टैबलेट के रूप में इन दवाओं का इस्तेमाल न करने की सलाह दी जाती है. लेकिन क्रीम के तौर पर दवा के आने से इन दोषों को दूर किया जा सकता है.

न्यूयॉर्क के येशिवा विश्वविद्यालय स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में नैनोकणों के प्रयोग से ये निष्कर्ष निकाला है. इन वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग के लिए 11 ऐसे चूहों का उपयोग किया जो कि ज़्यादा उम्र में उत्तेजनात्मक कमज़ोरी से ग्रस्त थे. शोध के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. केल्विन डेविस के मुताबिक सभी चूहों पर इस क्रीम का सकारात्मक असर दिखा और समय भी बहुत कम लगा. डॉ. केल्विन के मुताबिक टैबलेट का असर होने में आधा से एक घंटा तक समय लगता है, जबकि क्रीम का असर कुछेक मिनटों में ही हो जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक क्रीम का न तो कोई साइड इफेक्ट हुआ और न ही त्वचा में जलन जैसी कोई समस्या आई. उनका कहना है कि अगर जानवरों पर किए गए प्रयोग लगातार सुरक्षित रहे तो जल्दी ही ये प्रयोग मनुष्यों पर भी शुरू किया जाएगा.

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