हमारी बॉडी का स्ट्रक्चर, बीमारियों के अटैक और हमारी रेसिस्टेंट पॉवर यह सब हमारी विल पॉवर पर डिपेंड करतहैं। यह विल पॉवर हमारे विचारों में ही जन्म लेता है, वहीं विकसित होता है। हमारे सोचने का एटिट्यूड हमारे शरीर में ऐसे केमिकल उत्पन्न करता है जो हमारी हेल्थ के लिए पूरी तरह रिस्पॉन्सिबल होते हैं। कैंसर जैसे रोग से भी इसी विल पॉवर से छुटकारा पाया जा सकता है।

हमारी विचारधारा किस हद तक बीमारियों से जूझ सकती है, इस बारे में कार्ल सिमोंटोन नामक साइंटिस्ट ने सोच का एक इमेजिनेशन पिक्चर प्रस्तुत किया है और स्टडी के बाद उसके रिजल्ट से भी वैज्ञानिकों को अवगत कराया है। सिमोंटोन के अनुसार आप अपनी आँखें बंद कीजिए, टेंशन फ्री हो जाइए और इमेजिन कीजिए कि आप एक मजबूत दीवारों वाले किले के सुंदर बड़े हरे-भरे मैदान में लेटे हैं। इस विशाल किले के पार्क के हर दरवाजे पर सैनिक तैनात हैं।

सफेद बड़े ट्रैनी कुत्ते हिफाजत के लिए इधर-उधर घूमते हुए आपकी सिक्योरिटी को दूर-दूर तक सूँघ रहे हैं। अचानक उन सिक्योरिटी डॉग में से कोई एक, घुसपैठिए को पहचान लेता है, जो कि भीतर घुसने की कोशिश कर रहा है। कुत्तों की सारी फौज उस पर टूट पड़ती है।

वह घुसपैठिया भागने की कोशिश कर रहा है कि अचानक सिक्योरिटी सैनिक की गोली से वह घायल हो जाता है। चुस्त कुत्ते उसके चिथड़े कर डालते हैं और जब हड्डियों के अलावा शेष कुछ नहीं रहता शेष कुछ नहीं रहता है तो मुँह में हड्डियाँ दबाकर वे पार्क से बाहर चले जाते हैं।
आप इस स्वप्न चित्र यानी इमेजिनेशन पिक्चर को देखने के बाद जाग जाते हैं और नेचरली अपने को ज्यादा फ्रैश एवं रिलैक्स्ड फील करते हैं। अब अगर इस स्वप्न का रिव्यू किया जाए तो घुसपैठिया और कोई नहीं था, वह था कैंसर। सिक्योरिटी सैनिक की गोलियाँ थीं कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी और सिक्योरिटी सैनिक थे आपके शरीर के सुरक्षा तंत्र के डिफेंस एलिमेंट।

सिमोंटोन के अनुसार जब इस प्रकार की पॉजिटिव सोच सीरियस पैशेंट में डेवलेप की गई तो इस सोच के बड़े ही चमत्कारी प्रभाव हुए। पहले तो सिमोंटोन के इस एक्सपिरिमेंट को वैज्ञानिकों ने गंभीरता से न लेकर इसे महज एक संयोग भर माना मगर, निरंतर उसके सक्सेसफुल रिजल्ट ने अंततः वैज्ञानिकों को आकर्षित कर ही लिया।

कई डॉक्टरों ने सिमोंटोन के डायरेक्शन व ट्रेनिंग में लगभग एक दर्जन कैंसर के गंभीर रोगियों का उपचार किया और उन्हें दुबारा निरोग जीवन प्रदान किया। हाँ, यह बात अवश्य है कि कुछ डॉक्टरों की यह भी मान्यता थी कि केवल सिमोंटोन की सोच चिकित्सा ही नहीं बल्कि साथ-साथ चल रहे उपचार के प्रभाव को भी न नकारा जाए।

उनका मत था कि मात्र फीजिकल ट्रीटमेंट ही रोग से मुक्ति के लिए पर्याप्त नहीं हुआ करता है। शरीर के साथ-साथ मन का उपचार भी बहुत जरूरी है। अपने ट्रीटमेंट को उन्होंने कंप्लीट ट्रीटमेंट बताया था। वे रोगी के फीजिकल, मैंटल एवं सोशल तीनों लेवल के ट्रीटमेंट के समर्थक थे।

सिमोंटोन ने बताया कि ऐसे रोगियों को जिन्हें अन्य डॉक्टरों ने एक वर्ष से अधिक जीवन असंभव बताया था, उन्हें बीस वर्ष तक जीवित देखा। इसका कारण उनकी स्ट्रॉन्ग विल पॉवर थी, जिससे बीमार मनुष्य ने अपनी उम्र पर विजय प्राप्त की।

हमारे विचार व कल्पनाएँ हमारे शरीर की बायलॉजिकल केमिकल प्रोसेस को एक्टिव बनाती हैं और इन एक्टिव वेरिएबल्स के माध्यम से ही संदेश मस्तिष्क सेल तक पहुँचते हैं, जहाँ से यह पूरे शरीर में फैलकर उसे एक इफेक्टिव मेडिकल क्वॉलिटी प्रदान करते हैं।


जहाँ एक ओर कुछ डॉक्टर इस नए रिसर्च को लोकप्रिय बनाने में जुटे हैं वहीं दूसरी ओर अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने इस थेरेपी का विरोध भी किया। अमेरिका में इन थेरेपी को एडवांस समझा जा रहा है और पीएनआई अर्थात साइको न्यूरो इम्यूनोलॉजी बिहेवियर ट्रीटमेंट तथा न्यूरो इम्यूनो मोडयूलेशन नाम से जाना जाता है।

सिमोंटोन ने बताया है कि ब्रैन केमिकल्स न केवल इम्यून सिस्टम को कंट्रोल करता है बल्कि इम्यून सिस्टम से कम्यूनिकेशन भी रखने की क्षमता रखता है। ये केमिकल मैसेज पूरे शरीर को बैक्टीरिया, वायरस और ट्यूमर्स के संबंध में पूरी इन्फॉर्मेशन देते हैं।

इन्फेक्शन के दौरान इम्यून सेल्स न केवल बैक्टीरिया से लड़ती हैं बल्कि ब्रैन की तरह ही हार्टबीट और बॉडी टेम्प्रैचर को कंट्रोल करती हैं। यह इम्यून सेल्स (प्रतिरक्षा कोशिकाएँ) ब्रैन के इमोशन्स और कॉन्शियस के सेंटर से भी बतियाती हैं और उन्हें यह समझाती है कि बीमारी के दौरान क्यों रोगी परेशान हो जाता है, उसकी मैंटल कंडीशन क्यों विकृत होती है और रोग से लड़ने की शक्ति क्यों कम हो जाती है। सिमोंटोन का यह विचार वैज्ञानिक क्षेत्रों में गंभीरता से लिया जा रहा है व इस विषय पर अच्छी खासी बहस की जा रही है।


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